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________________ गाथा १०० नरकद्विक, स्थावर, उद्योत, आतप, एकेन्द्रियजाति उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व गाथा १०१ मनुष्यद्विक का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व गाथा १०३, १०४, १०५ ( २६ ) गाथा १०२ तीर्थंकरनाम, आहारकसप्तक आदि शुभध्र ुवबंधिनी प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व क्षपित कर्माश का स्वरूप गाथा १०६ हास्यद्विक, भय, जुगुप्सा, क्षीणमोहगुणस्थान में क्षय होने वाली प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व गाथा १०७ स्त्यानद्धित्रिक, स्त्रीवेद, मिथ्यात्वमोहनीय का जघन्य प्रदेश - क्रम स्वामित्व गाथा १०८ अरति, शोक, मध्यम आठ कषाय, ध्रुवबंधिनी अशुभ नाम प्रकृति, अस्थिरत्रिक, असातावेदनीय का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व का अनन्तानुबंधिचतुष्क का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व , Jain Education International २१७-२१८ For Private & Personal Use Only २१७ २१८-२१६ २१८ २१६-२२१ २२० २२१-२२५ २२२ २२५-२२७ गाथा १०६ मिश्र व सम्यक्त्वमोहनीय का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २३० गाथा ११० २२५ २२७-२२८ २२७ २२६-२३० २२६ २३०-२३१ गाथा १११ आहारकद्विव तीर्थंकरनाम का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २३३ २३१-२३२ २३२ २३२-२३४ www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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