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पंचसंग्रह : ७
व्याघातभाविनी अपवर्तना
निवाघाए एवं ठिइघातो एत्थ होइ वाघाओ।
वाघाए समऊणं कंडगमइत्थावणा होई ॥१४॥ शब्दार्थ-निवाघाए एवं-निर्व्याघातभाविनी का पूर्वोक्त प्रकार से, ठिइघातो-स्थितिघात, एत्थ-यहाँ, होइ-है, वाघाओ-व्याघात, वाघाएव्याघात में, समऊणं-समयन्यून, कंडगमइत्थावणा-कंडक प्रमाण स्थिति अतीत्थापना, होई. होती है।
गाथार्थ-निर्व्याघातभाविनी अपवर्तना का स्वरूप पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिये । यहाँ व्याघात स्थितिघात को कहते हैं । व्याघात में समयन्यून कंडकप्रमाण स्थिति अतीत्थापना है। विशेषार्थ--पूर्व में जो अपवर्तना की व्याख्या की है, वह व्याघात के अभाव में होने वाली अपवर्तना का स्वरूप जानना चाहिये। अब व्याघातभाविनी अपवर्तना का स्वरूप बतलाते हैं कि___ व्याघात में अपवर्तना अन्य रीति से होती है । स्थिति के घात को व्याघात कहते हैं। जब वह व्याघात प्राप्त होता है, यानि कि स्थितिघात होता है तब समयन्यून कंडकप्रमाण स्थिति अतीत्थापना होती है। ___ यहाँ समयन्यून इसलिये कहा है कि ऊपर की समय मात्र स्थिति की अपवर्तना होती है तब अपवर्तित होते उस स्थितिस्थान के साथ नीचे से कंडक प्रमाण स्थिति अतिक्रमित होती है। इसलिये अपवर्तित होते उस समय के बिना कंडक प्रमाण स्थिति अतीत्थापना होती है। ___ इस प्रकार से व्याघातभाविनी अपवर्तना में अतीत्यापना का प्रमाण जानना चाहिये । अब इसी प्रसंग में आये कंडक का स्वरूप
और उसका प्रमाण बतलाते हैं। कंडक निरूपण
उक्कोसं डायट्ठिई किंचूणा कंडगं जहण्णं तु। पल्लासंखंसं डायट्ठिई उ जतो परमबंधो ॥१५॥
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