________________
संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३
२७१
___ शब्दार्थ-समयाहियइत्थवणा--समयाधिक अतीत्थापनावलिका, बंधावलिया-बंधावलिका, य-और, मोत्तु--छोड़कर, निक्खेवो--निक्षेप, कम्मट्टिइ-कर्मस्थिति, बंधोदयआवलिया--बंधावलिका और उदयावलिका, मोत्तु–छोड़कर, ओवटे-अपवर्तना होती है।
गाथार्थ-समयाधिक अतीत्थापनावलिका और बंधावलिका ____ को छोड़कर शेष स्थिति निक्षेप रूप है तथा बंधावलिका एवं
उदयावलिका छोड़ शेष स्थिति की अपवर्तना होती है। विशेषार्थ--अपवर्तना के विषय में समयाधिक अतीत्थापनावलिका और बंधावलिका प्रमाण स्थितियों को छोड़कर शेष समस्त स्थितियाँ निक्षेप की विषय-रूप हैं। अर्थात् शेष सभी स्थितियों में दलिक निक्षेप किया जाता है। क्योंकि प्रतिसमय बंध रहा कर्म बंधावलिका के बीतने के बाद करण योग्य होता है किन्तु जब तक बंधावलिका न बीती हो तब तक किसी भी करण के योग्य नहीं होता है तथा जिस स्थान की अपवर्तना की जाती है, उसके दलिक को उसी में निक्षिप्त नहीं किया जाता है किन्तु उससे नीचे के स्थितिस्थान से एक आवलिका प्रमाण स्थानों को छोड़ नीचे के समस्त स्थानों में निक्षिप्त किया जाता है। इसलिये बंधावलिका और समयाधिक अतीत्थापनावलिका को छोड़ शेष समस्त स्थितियाँ निक्षेप की विषय रूप है तथा--- ... बंधावलिका और उदयावलिका को छोड़कर शेष समस्त कर्मस्थिति की अपवर्तना की जा सकती है। क्योंकि बंधावलिका के जाने के बाद बद्धस्थिति अपवर्तित होती है और वह भी उदयावलिको से ऊपर रही हुई स्थिति अपवर्तित होती है, उदयावलिका के अन्तर्गत रही हुई स्थिति अपवर्तित नहीं होती है। इसलिये बंधावलिका तथा उदयावलिकाहीन सम्पूर्ण कर्म स्थिति ये अपवर्तना की विषय रूप है। ___इस प्रकार से व्याघात के अभाव में होने वाली अपवर्तना का स्वरूप जानना चाहिये । अब व्याघात भाविनी अपवर्तना की विधि
का निरूपण करते हैं। Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org