________________
२६.
पंचसंग्रह : ७
इस प्रकार निर्व्याघात यानि सत्तागत स्थिति के समान स्थिति का बंध होने पर होने वाली उद्वर्तना का निरूपण जानना चाहिये। अब व्याघात अर्थात् सत्तागत स्थिति से समय आदि अधिक स्थिति का बंध होने पर होने वाली उद्वर्तना का विचार करते हैं कि वह कैसे होती है और उसकी दलिक निक्षेप विधि क्या है। व्याघातभाविनी उद्वर्तना--
निव्वाघाए एवं वाघाओ संतकम्महिगबंधो। आवलिअसंखभागो जावावलि तत्थ इत्थवणा ॥६॥ आवलिदोसंखंसा जइ वड्ढइ अहिणवो उठिइबंधो। उवटित तो चरिमा एवं जावलि अइत्थवणा ॥७॥ अइत्थावणालियाए पुण्णाए वड्ढइत्ति निक्खेवो।
ठितिउव्वट्टणमेवं एत्तो आव्वट्टणं वोच्छं ॥८॥ शब्दार्थ-निवाघाए-व्याघात के अभाव में, एवं-इस प्रकार, वाघाओ-व्याघात, संतकम्महिगबंधो-सत्ता से अधिक होने वाले कर्म बंध, आवलिअसंखभागो-आवलिका का असंख्यातवां भाग, जावावलि---यावत् आवलिका, तत्थ-वहाँ, इत्थवणा-अतीत्थापना ।
आवलिदोसंखंसा-आवलिका के दो असंख्यातवें भाग, जइ--यदि, वड्ढइ-बढ़ती है--होती है, अहिणवो-अभिनव नया, उ-और, ठिइबंधो-- स्थितिबंध, उव्वदृति-उद्वर्तना होती है, तो-तत्पश्चात, चरिमा एवंचरम की इसी प्रकार, जावलि-आवलिका पर्यन्त-पूर्ण आवलिका, अइत्थवणाअतीत्थापना। __ अइत्थावणालियाए-अतीत्थापनावलिका की, पुण्णाए-पूर्णता होने पर, वड्ढइत्ति-बढ़ता है, निक्खेवो-निक्षेप, ठितिउव्वट्टणमेवं---स्थिति उद्वर्तना इस प्रकार, एत्तो-यहाँ से अब, ओव्वट्टणं-अपवर्तना, वोच्छं-कहूंगा, वर्णन किया जायेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org