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________________ २३. पंचसंग्रह : ७ देशोन पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त चारित्र का पालन करके, क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ जीव के यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय में विध्यातसंक्रम द्वारा संक्रमित करते मध्यम आठ कषायों का जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। मिश्रमोहनीय आदि का जघन्य प्रदेशसंक्रमस्वामित्व हस्सगुणद्ध पूरिय सम्मं मीसं च धरिय उक्कोसं । कालं मिच्छत्तगए चिरउव्वलगस्स चरिमम्मि ॥१०॥ शब्दार्थ---हस्सगुणद्धं-गुणसंक्रम के अल्प काल द्वारा, पूरिय-पूरित कर, सम्म--सम्यक्त्व, मीसं-मिश्रमोहनीय, च-और, धरिय उक्कोसं कालं-उत्कृष्ट काल पर्यन्त पालन कर, मिच्छत्तगए-मिथ्यात्व में गये हुए के, चिरउव्वलगस्स-चिर उद्वलक के, चरिमे-चरम समय में। गाथार्थ-सम्यक्त्व उत्पन्न करके गुणसंक्रम के अल्पकाल द्वारा सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय को पूरित कर और उत्कृष्ट काल पर्यन्त पालन कर मिथ्यात्व में गये चिर उद्वलक के द्विचरम खंड के चरम समय में उनका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। विशेषार्थ-सम्यक्त्व उत्पन्न करके अल्पकाल पर्यन्त गुणसंक्रम ग्रन्थकार ने अपनी वृत्ति में उक्त चौबीस प्रकृतियों के लिये पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त चारित्र का पालन कर क्षपक श्रेणि पर आरूढ़ होने वाले के यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय में यथाप्रवृत्तसंक्रम द्वारा संक्रमित करते जघन्य प्रदेशसंक्रम कहा है । तत्पश्चात् होने वाले अपूर्व करण में तो गुणसंक्रम प्रवर्तित होने से जघन्य प्रदेशसंक्रम घटित नहीं हो सकता है। तत्त्व केवलिगम्य है। सम्यक्त्व उत्पन्न करके तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त तक प्रवर्धमान परिणाम वाला रहता है , जिससे उतने काल मिथ्यात्व के दलिकों को मिश्र और सम्यक्त्व में तथा मिश्र के सम्यक्त्व में गुणसंक्रम द्वारा संक्रमित करता है। यहाँ जितना अल्प काल हो सके उतना काल लेना है । क्योंकि यहाँ जघन्य प्रदेशसंक्रम का विचार किया जा रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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