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________________ सक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७७ १८१ यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि अप्रमत्तसंयतगुणस्थान तक में बंधविच्छेद होने वाली छियालीस और अपूर्वकरण गुणस्थान में बंधविच्छेद को प्राप्त होने वाली निद्राद्विक आदि सोलह, इस प्रकार बासठ तथा अपूर्वकरण संज्ञा वाले अपूर्वकरण से अनन्तानुबंधिचतुष्क, मिथ्यात्व और मिश्र ये छह कुल मिलाकर अड़सठ प्रकृतियों का गुणसंक्रम बताया है। यदि इनमें अशुभ वर्णादि के उत्तर भेदों को न लेकर सामान्य से अशुभ वर्णचतुष्क को लिया जाये तो पांच प्रकृतियों को कम करने पर कुल वेसठ प्रकृतियों का गुणसंक्रम होना बताया है। परन्तु पुरुषवेद और लोभ के बिना संज्वलनत्रिक, इन चार प्रकृतियों का भी गुणसंक्रम सम्भव है । क्योंकि अपूर्वकरण से अबध्यमान समस्त अशुभ प्रकृतियों का गुणसंक्रम होता है, जिससे निद्राद्विक आदि प्रकृतियों का गुणसंक्रम बताया है। इसी प्रकार नौवें गुणस्थान में अपने-अपने बंधविच्छेद के बाद इन चार प्रकृतियों का गुणसंक्रम होने में कोई बाधा नहीं दिखती है । क्यों कि छठे कर्मग्रंथ की गाथा ६७ की टीका में भी बंधविच्छेद के समय में समयन्यून दो आवलिका काल में बंधे हुए सत्तागत दलिकों का उतने ही काल में गुणसंक्रम द्वारा क्षय करता है, ऐसा बताया है तथा उद्वलनासंक्रम द्वारा भी जिन प्रकृतियों का अन्तर्मुहूर्तकाल में क्षय होता है, वहाँ भी उद्वलनासंक्रम के अंतर्गत गुणसंक्रम माना है। परन्तु यदि उस उद्वलनानुविद्ध गुणसंक्रम की विवक्षा न करें तो नौवें गुणस्थान में उद्वलनासंक्रम द्वारा क्षय को प्राप्त होती मध्यम आठ कषायादि शेष प्रकृतियों का भी गुणसंक्रम घटित नहीं हो सकता है, लेकिन उन प्रकृतियों को गुणसंक्रम में ग्रहण किया है, इसलिये इन चार प्रकृतियों (पुरुषवेद, लोभ बिना संज्वलनत्रिक) का भी गुणसंक्रम अवश्य सम्भव है, तथापि यहाँ उनकी विवक्षा क्यों नहीं की गई है ? विद्वज्जन इसको स्पष्ट करने की कृपा करें। . इस प्रकार से गुणसंक्रम की वक्तव्यता जानना चाहिये। अब सर्वसंक्रम का स्वरूप प्रतिपादन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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