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प्रकृतियां
घाति प्रकृतियां
जघन्य अनुभागसंक्रम - स्वामित्व
नव नोकपाय, संज्वलनचतुष्क
ज्ञानावरणपंचक, अंतराय पंचक दर्शनावरणषट्क
सम्यक्त्व मिश्र मोहनीय
आयुचतुष्टय
आहारकसप्तक तीर्थकरनाम
अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क
उक्त से शेष ६७ प्रकृतियां
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स्वामी
पंचसंग्रह : ७
जघन्य स्थितिसंक्रमक अन्तरकरण के बाद
नरकद्विक, देवद्विक, वैक्रियसप्तक | जघन्य अनुभागबंधक असंज्ञी
मनुष्य द्विक, उच्चगोत्र
पंचेन्द्रिय सूक्ष्म निगोदजीव
क्षपक, जघन्य स्थितिसंक्रमक नौवें गुणस्थानवर्ती
क्षीणमोही, समयाधिक आवलिका शेष
क्षयकाल में अंतिम खंड संक्रमक जघन्य स्थितिबंधक
अप्रमत्तगुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्दृष्टि
पश्चात्कृतसम्यक्त्व वाले मिथ्यादृष्टि
प्रभूत अनुभाग की सत्ता के नाश करने वाले अग्निकायिक, वायुकायिक, अन्य भव में भी ये दोनों जब तक वृहदनुभाग का बंध नहीं करते हैं
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