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________________ १३२ पंचसंग्रह : ७ क्यों संक्रमित नहीं होता है ? तो इसका उत्तर यह है कि जघन्य रससंक्रम काल में तथाजीवस्वभाव से केवल एकस्थानक रस संक्रमित नहीं होता है, किन्तु पूर्वबद्ध द्विस्थानक और एकस्थानक दोनों संक्रमित होते हैं । इसीलिये इन प्रकृतियों का संक्रम के विषय में एकस्थानक रस नहीं कहा है । यदि इन प्रकृतियों का जघन्य रससंक्रम के विषय में एकस्थानक रस कहा होता तो अंत में जब जघन्य रससंक्रम हो तब केवल एकस्थानक रस का ही हो, द्विस्थानक का हो ही नहीं सकता है, किन्तु संक्रम तो द्विस्थानक रस का भी होता है, इसलिये एकस्थानक रस का संक्रम न कहकर द्विस्थानक रस का संक्रम कहा है। द्विस्थानक में एक स्थानक समाहित हो जाता है, किन्तु एकस्थानक में द्विस्थानक समाहित नहीं हो सकता है। यहाँ रस-अनुभाग के संक्रम का आशय उस-उस प्रकार के रस वाले पुद्गलों का संक्रम समझना चाहिये । इस प्रकार से उत्कृष्ट और जघन्य रससंक्रम का प्रमाण जानना चाहिये । सुगमता से समझने के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार है उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमप्रमाण प्रकृतियां स्थानप्रमाण घातिप्रमाण aarcm द्विस्थानक सम्यक्त्वमोहनीय मिश्र, मनुष्य-तिर्यंचायु आतप उक्त से शेष देशघाति सर्वघाति सर्वघाति चतु:स्थानक - - जघन्य अनुभागसंक्रमप्रमाण प्रकृतियां स्थानप्रमाण । सम्यक्त्व, पुरुषवेद, संज्वलन- एकस्थानक चतुष्क उक्त से शेष द्विस्थानक घातिप्रमाण देशघाति सर्वघाति - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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