________________
संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५२
ध्र वसत्ता वाली प्रकृतियों के अजघन्य के सिवाय शेष जघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट ये तीन विकल्प भी सादि-सांत भंग वाले हैं। उनमें से उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रम के सादि-सांत (अध्र व) ये दो भंग मूल कर्म में जिस प्रकार से कहे गये हैं उसी प्रकार जानना चाहिये और जघन्य स्थितिसंक्रम तो अपने-अपने क्षय के अन्त में एक समय मात्र होने से सादि-सांत है।
इस प्रकार से उत्तरप्रकृतियों के जघन्य, अजघन्य आदि स्थितिसंक्रम के सादि आदि चार भंगों को जानना चाहिये तथा इसके साथ ही स्थितिसंक्रम का वर्णन समाप्त हुआ।
उत्तरप्रकृतियों के स्थितिसंक्रम के साद्यादि भंगों का प्रारूप पृष्ठ १२४ पर देखिए
अब अनुभागसंक्रम की प्ररूपणा करते हैं । अनुभागसंक्रम प्ररूपणा ___अनुभागसंक्रम प्ररूपणा के सात अनुयोगद्वार हैं-१. भेद, २. विशेषलक्षण, ३. स्पर्धकप्ररूपणा, ४. उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमप्रमाण, ५. जघन्य अनुभागसंक्रमप्रमाण, ६. स्वामित्व, और ७. सादि-आदि प्ररूपणा। इनमें से भेद, विशेषलक्षण और स्पर्धक इन तीन प्ररूपणाओं का विचार करते हैं। भेद, विशेषलक्षण और स्पर्धक प्ररूपणा
ठितिसंकमोन्व तिविहो रसम्मि उटणाइ विन्नेओ। रसकारणओ नेयं घाइत्तविसेसणभिहाणं ॥५२॥ शब्दार्थ-ठितिसंकमोव्व-स्थितिसंक्रम के समान, तिविहो-तीन प्रकार का, रसम्मि-~-रस (अनुभाग) संक्रम में, उन्वट्टणाइ-उद्वर्तनादि, विन्नेओजानना चाहिये, रसकारणओ-रस के कारण से, ने-समझना चाहिये, घाइसविसेसणभिहाणं---घातित्व आदि विशेष नाम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org