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पंचसंग्रह : ७ सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय की अन्तर्मुहर्त और आवलिकाद्विकहीन उत्कृष्ट स्थिति का संक्रम होता है। उनमें से सम्यक्त्व का स्वस्थान में और मिश्रमोहनीय का उभय में होता है। शेष प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के संक्रम का स्वामी उस-उस प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति का बंधक समझना चाहिये।
विशेषार्थ-पतद्ग्रहप्रकृति के अभाव में भी जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम संभव है, उनका यहाँ संकेत किया है । जो इस प्रकार है___कोई जीव पहले क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि होने के पश्चात् मिथ्यात्व में जाये और मिथ्यात्व में जाकर उत्कृष्ट संक्लेश में रहते मिथ्यात्वमोहनीय का उत्कृष्ट स्थितिबंध करे और उत्कृष्ट स्थितिबंध करने के पश्चात् अन्तर्मुहुर्त पर्यन्त मिथ्यात्वगुणस्थान में रहे, फिर अन्तमहूर्त बीतने के बाद विशुद्धि के बल से सम्यक्त्व प्राप्त करे, तत्पश्चात् सम्यग्दृष्टि होकर वह जीव अन्तर्मुहूर्त न्यून सत्तर कोडाकोडी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्टस्थिति को सम्यक्त्व और मिश्रमोहनीय का बंध नहीं होने पर भी उनमें संक्रमित करता है । इस प्रकार मिथ्यात्वमोहनीय की अन्तर्मुहर्त न्यून उत्कृष्ट स्थिति का संक्रम सम्यग्दृष्टि को होता है और वह मिश्र एवं सम्यक्त्व मोहनीय में होता है ।
यहाँ क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि को ग्रहण करने का कारण यह है कि उसके मिथ्यात्वमोहनीय के तीन पुज सत्ता में होते हैं । पहले गुणस्थान में से करण करके एवं करण किये सिवाय, इस तरह दो प्रकार से सम्यक्त्व प्राप्त करता है। करण करके जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है, वह तो अन्तःकोडाकोडी की सत्ता लेकर ऊपर जाता है, लेकिन जो करण किये बिना ही आरोहण करता है, वह ऊपर कहे अनुसार उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता लेकर चतुर्थ गुणस्थान में जाता है और अन्तमुहर्त न्यून उत्कृष्ट स्थिति संक्रमित करता है । उत्कृष्ट स्थितिबंध करके अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त पहले गुणरथान में रहकर ही सम्यक्त्व प्राप्त
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