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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४०,४१ करता है । इसीलिये अन्तर्मुहूर्त न्यून उत्कृष्टस्थिति का संक्रम होता है, ऐसा कहा है। चतुर्थ गुणस्थान में जाने के बाद अन्तर्मुहर्त ही उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता रहती है, उतने काल में विशुद्धि के बल से अन्तःकोडाकोडी सागरोपम से उपरान्त की स्थिति का क्षय करता है, जिससे अन्तर्मुहुर्त के बाद अन्तःकोडाकोडी सागरोपम से अधिक स्थिति की सत्ता नहीं होती है।
इस प्रकार से मिथ्यात्वमोहनीय की अन्तर्मुहूर्त न्यून उत्कृष्ट स्थिति का संक्रम जानना चाहिये और उसका स्वामी सम्यग्दृष्टि है यह बताया। अब सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय के उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम का प्रमाण और उसके स्वामी तथा अन्य सभी प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के संक्रम के स्वामियों का प्रतिपादन करते हैं
कोई क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्व में जाकर तीव्र संक्लेश से मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति बांधकर अंतर्मुहूर्त के बाद अविरतसम्यक्त्वगुणस्थान में जाकर वहाँ अन्तर्मुहूर्त न्यून और उदयावलिका से ऊपर की उस सत्तर कोडाकोडी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति को सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय में उनकी उदयावलिका से ऊपर संक्रमित करता है। उदयावलिका से ऊपर संक्रमित करने वाला होने से उस उदयावलिका को मिलाने पर अन्तर्मुहुर्त न्यून सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण सम्यक्त्वमोहनीय एवं मिश्रमोहनीय की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता होती है। मिथ्यात्वमोहनीय की स्थिति का जिस समय संक्रम हुआ, उस समय से संक्रमावलिका सकल करण के अयोग्य होने से उस एक आवलिका के जाने के पश्चात् उदयावलिका से ऊपर की सम्यक्त्वमोहनीय की स्थिति का स्वस्थान में अपवर्तनासंक्रम होता है और मिश्रमोहनीय का स्वस्थान में अपवर्तनासंक्रम होता है एवं सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रम होता है। ___ अपनी-अपनी दृष्टि का अन्यत्र संक्रमण नहीं होता है तथा चारित्रमोहनीय और दर्शनमोहनीय का परस्पर संक्रम नहीं होता है, इस नियम के अनुसार सम्यग्दृष्टि सम्यक्त्वमोहनीय को किसी परप्रकृति
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