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गाया १०८
स्थिति समुदाहार की तीव्रमंदता
गाथा १०६
जीव समुदाहार
गाथा ११०
ध्रुवबधिनी प्रकृतियों की जघन्य स्थिति बाँधते हुए पुण्य प्रकृतियों का चतुःस्थानकादि और पाप प्रकृतियों का द्विस्थानक रसबंध करने वाले जीवों का अनन्तरोपनिधा की अपेक्षा अल्पबहुत्व कथन
गाथा १११
( ३४ )
उक्त कथन का परंपरोपनिधा की अपेक्षा विचार
गाथा ११२
समस्त स्थितिस्थानों का अल्पबहुत्व
परिशिष्ट
२३१-२३२
२३१
२३२–२३५
२३२
२३५—२३७
15
२३७–२३६
१ - बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार की मूलगाथाएँ
२ - गाथाओं की अकाराद्यनुक्रमणिका
४
३ - वीर्यशक्ति का स्पष्टीकरण एवं भेद-प्रभेददर्शक प्रारूप -योग विचारणा के प्रमुख अधिकारों का स्पष्टीकरण : ५ - असत्कल्पना से योगस्थानों का स्पष्टीकरण एवं प्रारूप ६ - वर्गणाओं सम्बन्धी वर्णन का सारांश
२३६
- पुद्गल (कर्म) बंध का कारण और प्ररूपणा के प्रकार ८ – दलिक विभागात्पबहुत्व विषयक स्पष्टीकरण
६ - असत्कल्पना द्वारा षट्स्थानकप्ररूपणा का स्पष्टीकरण
- १० - षट्स्थानक में अधस्तनस्थान - प्ररूपणा का स्पष्टीकरण -
२३६–२४२
२३६
२३७
२४३
२५२
२५४
२५७
२६४
२७७
२८१
२८५
२८६
२१