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________________ ( ३३ ) २१३-२१८ २१३. २१६. २१६ २१८ -२२५. २१८. २२०. २२१: गाथा १०१-१०२ अल्पबहुत्व प्ररूपणा जघन्य अबाधा से उत्कृष्ट स्थिति तक के अल्पबहुत्व की विचारणा पर्याप्त-अपर्याप्त संज्ञी का सात कर्मसम्बन्धी अल्पबहुत्व (प्रारूप) गाथा १०३-१०४ आयुकर्म सम्बन्धी अल्पबहुत्व पर्याप्त अपर्याप्त, संज्ञी-असंज्ञी पंचेन्द्रियों के आयुकर्म सम्बन्धी आठ प्रकारों की विचारणा उक्त विचारणा का प्रारूप पर्याप्त-संज्ञी-असंज्ञी पंचेन्द्रिय के सिवाय शेष जीवभेदों में आयुकर्म का अल्पबहुत्व विषयक कथन उक्त काथन का प्रारूप स्थितिबंध के हेतुभूत अध्यवसायस्थानों के विचार के तीन द्वार पर्याप्त-अपर्याप्त संज्ञी सिवाय बारह जीव-भेदो में सात कर्मों का अल्पबहुरफ (बालप) गाया १०५-१०६ प्रगणना प्रख्पणा स्थितिस्थान के हेतुभूत अध्यवसायों का अमन्तरोपनिया की अपेक्षा कथनः उक्त कथन की परंपरोपनिय की अपेक्षा प्ररूपणा अनुकृष्टि कथन प्रकृति समुदाहार २२२ २२२ २२३: २२४” -२२५ -२२८: २२५ २२ः २२७ २२८८ २२८ २२८-२३० गाथा १०७ अल्पबहुत्व कथन २२८.
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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