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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५५,५६ १३७ हानि वाले रसस्थानों को निरन्तर बांधने की प्ररूपणा। इनमें से पहले वृद्धि और हानियों के समय की प्ररूपणा करते हैं___ अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि इन दो को छोड़कर शेष पाँच वृद्धियों अथवा हानियों को जीव अधिक से अधिक आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण समय पर्यन्त और अंतिम अनन्तगुणवृद्धि तथा अनन्तगुणहानि इन दो को अन्तर्मुहूत काल पर्यन्त निरन्तर करता है। अर्थात् विवक्षित समय में जिस रसस्थान पर जीव विद्यमान है उससे अनन्त भागाधिक स्पर्धक वाले रसस्थान में उत्तरोत्तर समय में बढ़ता रहे तो आवलिका के असंख्यातवें भाग के समय पर्यन्त बढ़ता रहता है इसी प्रकार प्रत्येक वृद्धि के लिये समझना चाहिये तथा विवक्षित समय में जिस रसस्थान पर जीव है उससे अनन्तभागहीन स्पर्धक वाले रसस्थान पर उत्तरोत्तर समय में यदि जीव जाये तो आवलिका के असंख्यातवें भाग से समय पर्यन्त निरंतर हानि को प्राप्त करता है। इसी तरह अंतिम हानि अनन्तगुणहानि को छोड़कर प्रत्येक हानि के लिये समझना चाहिये । किन्तु इतना विशेष है कि अंतिम वृद्धि-अनन्तगुणवृद्धि और अंतिम हानि–अनन्तगुणहानि इन दोनों का काल अंतर्मुहूर्त प्रमाण है । इस प्रकार से वृद्धि और हानि की प्ररूपणा जानना चाहिये। ___ अब किस रसबंध के स्थान को जीव कितने काल पर्यन्त निरंतर बांधता है, इसकी अपेक्षा समय प्ररूपणा करते हैं प्रथम रसबंध के स्थान से असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण रसबंध के स्थानों में के किसी भी स्थान को अधिक से अधिक चार समय पर्यन्त निरंतर बाँधता है, उसके बाद के असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण रसबंध के स्थानों में के किसी भी स्थान को पांच समय पर्यन्त निरंतर बाँधता है, उसके बाद के असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थानों में के किसी भी स्थान को छह समय पर्यन्त और उसके बाद के असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थानों में के किसी भी स्थान को
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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