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________________ बंधन करण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३६ उससे नामप्रत्ययस्पर्धक की जघन्य वर्गणा में अनन्त गुणे स्नेहाविभाग हैं, उससे उसी की उत्कृष्ट वर्गणा में अनन्त गुणे स्नेहाविभाग होते हैं, उससे प्रयोगप्रत्ययस्पर्धक की जघन्य वर्गणा में अनन्त गुणे और उससे उसी की उत्कृष्ट वर्गणा में अनन्त गुणे स्नेहाविभाग होते हैं। सरलता से समझने के लिए जिसका प्रारूप इस प्रकार है स्पर्धक नाम वर्गणा स्थापना स्नेहाणुओं का प्रमाण १. स्नेहप्रत्यय स्तोक, अल्प, उससे अनंतगुण उससे २. नामप्रत्यय ३. प्रयोगप्रत्यय जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट इस प्रकार पुद्गल परमाणुओं के सम्बन्ध की कारणभूत स्नेह प्ररूपणा जानना चाहिये। जीव और कर्मपरमाणुओं का सम्बन्ध स्नेहप्रत्ययिक है, यह स्पष्ट हो जाने पर जिज्ञासु पूछता है कि जीव के साथ सम्बद्ध हुए उन कर्मपरमाणुओं में क्या विशेषताएँ उत्पन्न होती हैं और उनका स्वरूप क्या है ? इसका समाधान करने के लिये आचार्य बंधनकरण की सामर्थ्य से बंधने वाली मूल और उत्तर प्रकृतियों का विभाग बताने के लिये गाथा सूत्र कहते हैं । प्रकृति विभाग का कारण अणुभागविसेसाओ मूलुत्तरपगइभेयकरणं तु । तुल्लस्सावि दलस्सा पगइओ गोणनामाओ ॥३९॥
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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