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________________ पंचसंग्रह : ६ इस प्रकार से प्रयोगप्रत्ययस्पर्धक प्ररूपणा का वर्णन करने के पश्चात अब उक्त तीनों प्ररूपणाओं के वर्गणागत स्नेहाविभागों का अल्पबहुत्व बतलाते हैं। स्नेहाविभाग अल्पबहुत्व तिण्हपि फड्डगाणं जहन्नउक्कोसगा कमा ठविउं । नेयाणंतगुणाओ वग्गणा हफड्डाओ ॥३८॥ शब्दार्थ-तिहंपि फड्डगाणं-तीनों स्पर्धकों की, जहन्नउक्कोसगाजघन्य और उत्कृष्ट वर्गणा, कमा-अनुक्रम से, ठविउं-स्थापित करके, नेयाणंतगुणाओ-अनन्त गुण जानना चाहिये, वग्गणा-वर्गणा, हफड्डाओ-स्नेहप्रत्ययस्पर्धक से । गाथार्थ-तीनों स्पर्धकों की जघन्य और उत्कृष्ट वर्गणा अनुक्रम से स्थापित करके पहली स्नेहप्रत्ययवर्गणा से शेष उत्तर-उत्तर की वर्गणायें अनन्तगुण जानना चाहिये। विशेषार्थ-यहाँ स्नेह, नाम और प्रयोग प्रत्ययिक स्पर्धकों की प्ररूपणा की जा रही है और स्पर्धक वर्गणाओं के समूह को कहते हैं तथा वर्गणायें स्नेहगुण से समन्वित परमाणुओं से बनती हैं। अतएव गाथा में यह स्पष्ट किया है कि प्रत्येक की जघन्य से उत्कृष्ट वर्गणा में कितने स्नेहाविभाग होते हैं। इसको स्पष्ट करने का सूत्र इस प्रकार है 'तिण्हंपि फड्डगाणं' अर्थात् स्नेहप्रत्यय, नामप्रत्यय ओर प्रयोगप्रत्यय इन तीनों की सर्वप्रथम जघन्य और उत्कृष्ट वर्गणा 'कमा ठविउं' अनुक्रम से स्थापित करें और स्थापित करके अपनी-अपनी जघन्य वर्गणा से स्वयं की उत्कृष्ट वर्गणा अनन्त गुणी जानना चाहिये। वह इस प्रकार है स्नेहप्रत्ययस्पर्धक की जघन्य वर्गणा में स्नेहाविभाग अल्प हैं, उससे उसकी उत्कृष्ट वर्गणा में अनन्तगुणे स्नेहाविभाग होते हैं,
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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