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________________ पंचसंग्रह : ६ भाग अधिक परमाणु होते हैं। तत्पश्चात् अग्रहण वर्गणा, फिर तेजस्प्रायोग्य ग्रहण वर्गणा, उस प्रकार अनुक्रम से भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण वर्गणा के विषय में भी जानना चाहिये। इस प्रकार जीवप्रायोग्य ग्रहण वर्गणाओं के स्वरूप का विचार कहने के बाद वर्गणाओं के पौद्गलिक होने से अब उनके वर्णादि का निरूपण करते हैं। वर्गणाओं के वर्णादि पंचरस पंच वन्नेहिं परिणया अटफास दो गंधा। जावाहरग जोग्गा चउफासाविसेसिया उरि ॥१८॥ शब्दार्थ--पंच-पांच, रस-रस, पंच-पांच, वन्नेहि-वर्णों से, परिणया–परिणत-युक्त, अट्ठफासा-आठ स्पर्श, दो गंधा-दो गंध, जावाहरगजोग्गा--आहारक प्रायोग्य तक, चउफासा-चार स्पर्श, विसेसियाविशेषित युक्त, उरि-ऊपर की। गाथार्थ-आहारकप्रायोग्य वर्गणा तक की वर्गणायें पांच रस, पांच वर्ण, आठ स्पर्श और दो गंध युक्त होती हैं और ऊपर की वर्गणायें चार स्पर्श युक्त हैं। विशेषार्थ-वर्गणायें पौद्गलिक गुण युक्त होने पर भी उनमें संभव विशेषता का यहां उल्लेख किया है। जावाहारग जोग्गा–अर्थात् औदारिकशरीर से लेकर आहारक शरीर योग्य वर्गणा पर्यन्त वर्गणायें पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध और आठ स्पर्श से युक्त हैं । अर्थात् औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरप्रायोग्य ये तीन वर्गणायें पुद्गल द्रव्य गत पांच वर्ण आदि कुल बीस गुणों से युक्त हैं तथा ऊपर की तैजसादि शरीर योग्य शेष पांच वर्गणायें पांच वर्ण पाँच रस और दो गंध वाली तो हैं परन्तु स्पर्श के विषय में चार स्पर्श वाली जानना चाहिये । जिसका आशय यह है कि तैजसादि पांच वर्गणाओं में के प्रत्येक स्कन्ध में मृदु और लघु ये दो स्पर्श तो अवस्थित हैं और स्निग्ध-उष्ण, स्निग्ध-शीत, रूक्ष-उष्ण
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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