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________________ बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १७ वर्गणा होती है और वही जघन्य वर्गणा अपने अनन्तवें भाग से युक्त होने पर उत्कृष्ट ग्रहण योग्यवर्गणा होती है। विशेषार्थ-गाथा में यह स्पष्ट किया गया है कि जघन्य और उत्कृष्ट योग में वर्तमान जीव जिन वर्गणाओं को ग्रहण करता है, उनकी जघन्य और उत्कृष्ट वर्गणाओं में परमाणु कितने प्रमाण होते हैं। ___जिन वर्गणाओं में सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण अथवा अभव्यों से अनन्तगुण परमाणु होते हैं वे वर्गणायें औदारिक आदि शरीर के ग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणायें होती हैं और वही एक दो आदि परमाणुओं के अनुक्रम से बढ़ती हुई उत्कृष्ट ग्रहणयोग्य वर्गणा होती हैं, तथा जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा में अपने अनन्तवें भाग अधिक परमाणु होते हैं। __ औदारिकप्रायोग्य उत्कृष्ट ग्रहण वर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली अग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा होती है और फिर एक दो आदि अनुक्रम से बढ़ते हुए परमाणु वाली चरम उत्कृष्ट अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा होती है । अग्रहण जघन्य वर्गणा में के परमाणुओं को सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण संख्या द्वारा अथवा अभव्यों से अनन्त गुण संख्या द्वारा गुणा करने पर जितने परमाणु होते हैं उतने परमाणु उत्कृष्ट अग्रहण वर्गणा में जानना चाहिये। उत्कृष्ट अग्रहण वर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली वैक्रियशरीर की ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है, वही एक दो आदि परमाणु के क्रम से बढ़ते हुए उत्कृष्ट वर्गणा होती है । जघन्य से उत्कृष्ट वर्गणा में अपने अनन्तवें भाग अधिक परमाणु होते हैं। उत्कृष्ट ग्रहण योग्य वर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली अग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा होती है । एक, दो, परमाणु आदि के क्रम से बढ़ते हुए उत्कृष्ट अग्रहण वगणा होती है । जघन्य से उत्कृष्ट में अनन्त गुणे परमाणु होते हैं। तत्पश्चात् एकाधिक परमाणु वाली आहारकशरीरयोग्य जघन्य वर्गणा होती है । और फिर एक, दो आदि परमाणु के क्रम से बढ़ते हुए उत्कृष्ट ग्रहण वर्गणा होती है । जघन्य से उत्कृष्ट में अनन्तवें
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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