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पंचसंग्रह : ५ भी काल में बंध का नाश होने वाला नहीं है, सर्वदा बंध होता ही रहेगा, इसलिए अनन्त है । इस प्रकार अभव्य जीवों में अनादि-अनन्त बंध-प्रकार जानना चाहिए। ___भव्य जीवों में अनादि-सांत प्रकार होता है । क्योंकि भूतकाल में सदैव बंध होते आने से अनादि है और भविष्यकाल में मोक्ष जाने पर बंध का विच्छेद होगा इसलिए सांत है। इसीलिए भव्य जीवों में अनादि-सांत भंग प्राप्त होता है।
उपशांतमोहगुणस्थान से पतित हुए जीव में सादि-सांत प्रकार प्राप्त होता है। क्योंकि उपशांतमोहगुणस्थान में बंध का अभाव होने
और वहाँ से पतन होने पर पुनः बंध प्रारम्भ हो जाने से सादि है। अर्था उपशांतमोहगुणस्थान में सांप रायिक कर्म का बंध नहीं होता है, किन्तु वहाँ से पतित होने की दशा में जब दसवें आदि अधोवर्ती गुणस्थानों में जीव आता है तब पुनः बंध प्रारम्भ हो जाता है, जिससे सादि है और भविष्य काल में अधिक से अधिक देशोनअर्धपुद्गलपरावर्त काल में उसको मोक्ष में जाने पर बंध का नाश होगा, जिससे वह सांत है । इसीलिए उपशांतमोहगुणस्थानवर्ती जीव में सादि-सांत प्रकार बताया है।
इस प्रकार बंध के तीन प्रकार होते हैं। अब इन्हीं बंधप्रकारों के उत्तरभेद बतलाते हैं। बंधप्रकारों के उत्तरभेद
पयडीठिईपएसाणुभागभेया चउव्विहेक्केक्को । उक्कोसाणुक्कोस जहन्न अजहन्नया तेसि ॥१०॥ तेवि हु साइ-अणाई-धुव-अधुवभेयओ पुणो चउहा। ते दुविहा पुण नेया मूलुत्तरपयइभेएणं ॥११॥ शब्दार्थ-पयडीठिईपएसाणुभागभेया-प्रकृति, स्थिति, प्रदेश और अनु
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