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________________ पंचसंग्रह : ५ पत्योपम सागरोपम के भेद — इन दोनों के तीन तीन भेद हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं (१) उद्धार पल्योपम, (२) अद्धा पल्योपम और (३) क्षेत्र पल्योपम । ( १ ) उद्धार सागरोपम, ( २ ) अद्धा सागरोपम और (३) क्षेत्र सागरोपम । ये प्रत्येक पल्योपम और सागरोपम भी पुनः दो-दो प्रकार के हैं—एक बादर और दूसरा सूक्ष्म 1 इन दो भेदों में से बादर का यही प्रयोजन है कि सूक्ष्म का सुगमता से बोध हो सके । उक्त बादर उद्धार पल्योपम आदि तीन तीन भेदों के लक्षण इस प्रकार हैं ३४ (१) बादर उद्धार पत्योपम - सागरोपम - ऊपर जो पल्योपम और सागरोपम का स्वरूप बताया गया है, वह बादर उद्धार पल्योपम और सागरोपम का समझना चाहिए | (२) सूक्ष्म उद्धार पल्योपम - सागरोपम - पूर्वोक्त बादर उद्धार पल्य के . एक-एक केशाग्र के अपनी बुद्धि से असंख्यात - असंख्यात खंड करें। जो विशुद्ध नेत्र वाले छद्मस्थ पुरुष के दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्म पुद्गल द्रव्य के असंख्यातवें भाग एवं सूक्ष्म पनक े ( फूलन) के शरीर से असंख्यातगुणे हों । उन सूक्ष्म बालाग्र खंडों से वह पल्य ठूस ठूस कर भरा जाये और उनमें से प्रति समय एक-एक बालाग्र खंड निकाला जाये । इस प्रकार निकालते-निकालते जितने समय में वह पल्य खाली हो जाये उसे सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहते हैं, इसमें संख्यात वर्ष कोटि प्रमाण काल होता है । दस कोटाकोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है । १ अनुयोगद्वार सूत्र में सूक्ष्म और व्यवहारिक ये दो भेद किये हैं । २ विशेषावश्यकभाष्य की कोट्याचार्य प्रणीत टीका में इसका वनस्पति विशेष' अर्थ किया है । प्रवचनसारोद्धार की टीका में लिखा है कि वृद्धों ने बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय के शरीर के बराबर इसकी अवगाहना बताई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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