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पंचसंग्रह : ५
कोई शोक -अरति और स्त्रीवेद के साथ बांधता है । इसी प्रकार नपुंसकवेद में भी समझ लेना चाहिए । इस तरह बाईस प्रकृतिक बंधस्थान भिन्न-भिन्न जीवों में छह प्रकार से होता है । इसी प्रकार इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान के चार भंग होते हैं । क्योंकि उसमें एक जीव के एक समय में दो वेदों (स्त्रीवेद, पुरुषवेद) में से किसी एक वेद और दो युगलों में से किसी एक युगल का बंध होता है । सारांश यह हुआ कि अपने-अपने बंधस्थान में सम्भवित वेदों और युगलों को परस्पर में गुणा करने से अपने-अपने बंधस्थानों के भंग होते हैं । जो इस प्रकार हैं
बाईस के छह, इक्कीस के चार, इसके आगे प्रमत्तसंयतगुणस्थान तक सम्भवित बंधस्थानों के दो-दो और उसके आगे संभवित बंधस्थानों के एक-एक भंग होते हैं । इन भंगों की अपेक्षा से एक सौ सत्ताईस भूयस्कारबंध इस प्रकार हैं
पहले मिध्यात्वगुणस्थान में एक भी भूयस्कारबंध नहीं होता है । क्योंकि बाईस प्रकृतिक बंधस्थान से अधिक प्रकृतियों वाला कोई अन्य बंधस्थान नहीं है । जिसके बांधने से वहाँ भूयस्कारबंध सम्भव हो ।
दूसरे गुणस्थान में चौबीस भूयस्कार होते हैं । क्योंकि इक्कीस को बांधकर बाईस का बंध करने पर इक्कीस के चार भंगों को और बाईस के छह भंगों को परस्पर में गुणा करने पर ४ x ६ = २४ भूयस्कार होते हैं ।
तीसरे गुणस्थान में बारह भूयस्कार होते हैं, क्योंकि सत्रह को बांधकर बाईस का बंध करने पर सत्रह के दो विकल्पों का बाईस के छह भंगों से गुणा करने से २x६ = १२ भंग होते हैं ।
चौथे गुणस्थान में बीस भूयस्कार होते हैं । क्योंकि सत्रह का बंध करके इक्कीस का बंध होने पर २X४ = ८ और बाईस का बंध होने पर २४६ = १२, इस प्रकार १२ +८ = २० भंग होते हैं ।
पांचवें गुणस्थान में चौबीस भूयस्कार होते हैं । करके सत्रह का बंध होने पर २x२=४, इक्कीस का = ८ और बाईस का बंध होने पर २x६ = १२, इस - २४ भंग होते हैं ।
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क्योंकि तेरह का बंध
बंध होने पर २x४ प्रकार ४+८+१२
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