SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८४, १८५ ४८३ लेकर अपने-अपने उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मस्थान पर्यन्त दूसरा स्पर्धक होता है। इस प्रकार प्रत्येक वेद के दो-दो स्पर्धक होते हैं-'दो फड्डावेयाणं । वेदत्रिक के दो-दो स्पर्धक होने के स्पष्टीकरण का यह पहला प्रकार है। अब दूसरे प्रकार से उनके दो-दो स्पर्धक होने के विचार को स्पष्ट करते हैं अभव्यप्रायोग्य जघन्य प्रदेश की सत्तावाला कोई जीव त्रस में उत्पन्न हो, वहाँ पर अनेक बार देशविरति एवं सर्वविरति को प्राप्त कर एवं चार बार मोहनीय की उपशमना कर और एक सौ बत्तीस सागरोपमपर्यन्त सम्यक्त्व का पालन कर और सम्यक्त्व से च्युत न होते हुए नपुसकवेद के उदय से क्षपकण पर आरूढ़ हो, वहाँ नपुसकवेद की प्रथम स्थिति के द्विचरम समय में वर्तमान दूसरी स्थिति में का चरमस्थितिखंड अन्यत्र संक्रमित हो जाता है और वैसा होने से उपरितन दूसरी स्थिति सम्पूर्ण रूप से निर्लेप हो जाती है, मात्र प्रथमस्थिति के चरम समय की ही सत्ता रहती है। उस समय जो सर्वजघन्य प्रदेश सत्ता होती है, वह पहला जघन्य प्रदेशसत्कर्गस्थान कहलाता है, एक परमाणु के मिलाने पर दूसरा, दो परमाणु के मिलाने पर तीसरा प्रदेश सत्कर्मस्थान होता है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा एक-एक परमाणु की वृद्धि से होने वाले प्रदेशसत्कर्मस्थान वहाँ तक कहना चाहिये यावत् गुणितकर्मांश जीव का सर्वोत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मस्थान होता है । इन अनन्त प्रदेशसत्कर्मस्थानों के समूह का एक स्पर्धक होता है तथा दूसरी स्थिति के चरम खंड को संक्रांत करते हुए चरमसमय में पूर्वोक्त प्रकार से जो सर्व जघन्य प्रदेशसत्कर्मस्थान होता है, वहाँ से आरम्भ कर भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा उत्तरोत्तर वृद्धि से होने वाले निरंतर प्रदेशसत्कर्मस्थान वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy