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________________ ४८४ पंचसंग्रह : ५. गुणितकर्माश जीव का सर्वोत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मस्थान होता है। इन सभी प्रदेशसत्कर्मस्थानों के समूह का दूसरा स्पर्धक होता है। ___इस प्रकार से नपुसकवेद के दो स्पर्धक होते हैं। स्त्रीवेद के भी इसी प्रकार दो स्पर्धक समझ लेना चाहिये और पुरुषवेद के दो स्पर्वक इस प्रकार जानना चाहिये-~ उदय के चरम समय में जो सर्वजघन्यप्रदेश की सत्ता होती है, वहाँ से लेकर भिन्न-भिन्न जीवों को अपेक्षा एक-एक परमाणु को वृद्धि से होने वाले निरन्तर प्रदेशसत्कर्मस्थान वहाँ तक कहना चाहिये, यावत् गुणितकर्माश जीव का उत्कृष्ट प्रदेशसत्कमस्थान होता है। इन अनन्त प्रदेशसत्कर्मस्थानों का पहला स्पर्धक है तथा दूसरी स्थिति सम्बन्धो चरमखंड को संक्रांत करने पर उदय के चरम समय में जो सर्वजघन्य प्रदेश की सत्ता होती है, वहाँ से लेकर पहले स्पर्धक के समान दूसरा स्पर्धक होता है। अथवा प्रकारान्तर से दो स्पर्धक की प्ररूपणा इस तरह से जानना चाहिये जब तक किसी भी वेद की पहली स्थिति और दूसरी स्थिति सत्ता में हो वहाँ तक जघन्य प्रदेशसत्कर्मस्थान से आरम्भ कर उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता तक का एक स्पर्धक होता है और दोनों में से किसी भी एक स्थिति का क्षय होने पर पहली स्थिति अथवा दूसरी स्थिति जब शेष रहे तब उससे सम्बन्धी दूसरा स्पर्धक होता है-'दो इगि संतं हवा एए।' _इस प्रकार पहली और दूसरी दोनों स्थितियों का एक स्पर्धक और दोनों में से एक स्थिति शेष रहे उसका एक, इस तरह वेद के दो-दो स्पर्धक होते हैं। ___ इस प्रकार से प्रत्येक वेद के दो-दो स्पर्धक होने के कारण को स्पष्ट करने के बाद अब यह स्पष्ट करते हैं कि प्रत्येक वेद की प्रथमस्थिति के अन्त में कितना-कितना समय शेष रहता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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