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________________ गाथा १०१ प्रकृत्युदयापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा मिथ्यात्वमोहनीय की साद्यादि प्ररूपणा अध्रुवोदया, ध्रुवोदया उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा १०२ स्थिति- उदय के प्रकार गाथा १०३ उदीरणा योग्य से उदय योग्य स्थिति का एक स्थिति स्थान अधिक होने का हेतु निद्रापंचक के अतिरिक्त दोष इकतालीस प्रकृतियों के जघन्य उदय का प्रमाण गाथा १०४ ( ४६ ) अनुभागोदय विषयक विशेषता गाथा १०५ प्रदेशोदयापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा १०६ प्रदेशोदयापेक्षा सभी उदय प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा १०७, १०८ ग्यारह गुणश्रेणियों के नाम और लक्षण गुणश्र ेणियों में दल रचना एवं समय का प्रमाण गुणश्र णियों का प्रदेश और समय प्रमाण दर्शक प्रारूप गाथा १०६ गतियों में संभव गुणश्र ेणियां गाथा ११० सामान्यतः उत्कृष्ट जघन्य प्रदेशोदय का स्वामित्व For Private & Personal Use Only Jain Education International ३३६-३३८ ३३७ ३३७ ३३८ ३३६-३४० ३३६ ३४०-३४५ ३४१ ३४४ ३४५-३४७ ३४६ ३४७-३५१ ३४७ ३५१-- ३५४ ३५२ ३५४-३६१ ३५५ ३५८ ३६० ३६१–३६३ ३६२ ३६३–३६४ ३६३ www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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