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________________ ( ४७ ) ३६६ ३६७ गाथा १११ सम्यक्त्वमोहनीय, वेदत्रिक, संज्वलनकषायचतुष्क के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी ३६४ लघुक्षपणा, चिरक्षपणा का अर्थ ३६५ क्षीणमोह गुणस्थान में उदयविच्छेद प्राप्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी ३६५ सयोगि और अयोगि केवली गुणस्थान में उदय विच्छिन्न होने वाली प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी गाथा ११२ ३६६-३६७ निद्राद्विक, वैक्रिय सप्तक, देवद्विक प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी गाथा ११३ एकान्त तिर्यंच उदय प्रायोग्य मिथ्यात्व, स्त्यानद्धित्रिक, अपर्याप्त नाम प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी ३६८ गाथा ११४ ३६६ हास्यषट्क मध्यम कषायाष्टक का उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व गाथा ११५ ३६६-३७० देव और नरक आयु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व ३७० गाथा ११६ ३७०-३७१ मनुष्यायु, तिर्यंचायु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व ३७१ गाथा ११७ ३७२-३७३ नरकद्विक, तियंचद्विक, दुर्भगत्रिक, नीचगोत्र, मनुष्यानुपूर्वी का उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व www.jainelibrary.org | ३७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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