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________________ पंचसंग्रह : ५ बन्ध समय से लेकर उदय के प्रथम समय पर्यन्त उक्त प्रकार से ( उत्कृष्ट योग और काल से) बन्धी हुई देवायु और नरकायु की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता प्राप्त होती है । क्योंकि उदय होने के बाद तो दलिक भोग करने के द्वारा निर्जीण होते जाते हैं । इसीलिये उदय के प्रथम समय पर्यन्त उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता संभव है । इस प्रकार देवायु और नरकायु की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता के स्वामियों को बतलाने के बाद अब शेष रही मनुष्यायु और तिर्यंचायु की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता के स्वामियों को बतलाते हैं- ४४२ कोई जीव तिर्यंचा और मनुष्यायु को उत्कृष्ट बन्धकाल और उत्कृष्ट योग द्वारा पूर्वकोटि प्रमाण बांधे और बांधकर अपने - अपने योग्य भव में अर्थात् मनुष्यायु का बन्धक मनुष्य में और तिर्यंचायु का बन्धक तिर्यंच में उत्पन्न हो बहुत ही सुखपूर्वक अपनी-अपनी आयु को यथायोग्य रीति से अनुभव करे और उसके बाद अर्थात् मनुष्य, तिर्यंच में उत्पन्न होने के बाद मात्र अन्तर्मुहूर्त काल रहकर मरण सन्मुख होने पर उत्कृष्ट बन्धकाल और उत्कृष्ट योग द्वारा परभव की स्वजातीय यानी मनुष्य मनुष्यायु और तिर्यंच तिर्यंचायु का बन्ध करे । उस आयु के बन्ध के अन्त समय में भुज्यमान आयु की अपवर्तना होने से पहले सुखपूर्वक अपनी आयु को भोगने वाले मनुष्य के मनुष्यायु की और तिर्यंच के तिर्यंचायु की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता होती है । सुखी जीव के आयुकर्म के अधिक प्रदेशों का क्षय नहीं होने का संकेत करने के लिये यहाँ साताबहुल विशेषण दिया है। उक्त कथन का तात्पर्य यह हुआ कि कोई जीव पूर्वकोटि प्रमाण मनुष्य या तिर्यंच आयु को बांधकर अनुक्रम से मनुष्य या तिर्यंच में उत्पन्न हो, वहाँ अपनी आयु को मात्र अन्तर्मुहूर्त सुखपूर्वक अनुभव कर मरण के सन्मुख हो । मरण-सन्मुख होने वाला वह जीव भुज्यमान आयु की अपवर्तना करता ही है, किन्तु अपवर्तना करने से पहले उत्कृष्ट बन्धकाल और उत्कृष्ट योग द्वारा परभव की स्वजातीय आयु बांधे तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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