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________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४६ ४१६ जो जीव जिन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति का बंध करे और जो जीव जिन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति को संक्रांत करे, उस-उस जीव को उन-उन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का स्वामी समझना चाहिये। __ इस प्रकार से उत्कृष्ट स्थितिसत्ता के स्वामियों का निर्देश करने के बाद अब जघन्य स्थितिसत्ता के स्वामित्व को स्पष्ट करते हैं। जघन्य स्थिति व स्वामित्व उदयवईणेगठिइ अणुदयवइयाण दुसमया एगा। होइ जहन्नं सत्तं दसह पुण संकमो चरिमो ॥१४६॥ शब्दार्थ-उदयवईगठिइ-उदयवती प्रकृतियों की एक समय प्रमाण स्थिति, अणुायवइयाण .. अनुदयवती प्रकृतियों की, दुसमया-दो समय, एमा-एक समय, होइ-होती है, जहन्न-जघन्य, सत्त-स्थितिसत्ता, दसहं-दस प्रकृतियों की, पुण-पुनः, संकमो चरिमो-चरम संक्रम । गाथार्थ- उदयवती प्रकृतियों की एक समय प्रमाण और अनुदयवती प्रकृतियों की दो समय अथवा एक समय प्रमाण जघन्य स्थितिसत्ता होती है तथा दस प्रकृतियों का चरम संक्रम उनकी जघन्य स्थितिसत्ता है। विशेषार्थ- गाथा में उदयवती और अनुदयवती प्रकृतियों की जघन्य स्थितिसत्ता के स्वामियों को बतलाया है___ सत्ता के नाश के समय भी जिन प्रकृतियों का रसोदय-अनुभागोदय हो, वे प्रकृतियां उदयवती और इतर अनुदयवती कहलाती हैं । उदयवती प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं- ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, सम्यक्त्वमोहनीय, संज्वलन लोभ, आयुचतुष्क, नपुसकवेद, स्त्रीवेद, साता. असाता रूप वेदनीयद्विक, उच्चगोत्र, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, स, www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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