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२५६
( ४३ ) गाथा ७३
२५३-२५४ सप्रतिपक्ष स्थिर, शुभ, यशःकीति, सातावेदनीय का जघन्य अनुभाग बन्ध स्वामित्व
२५३ गाथा ७४
२५५-२६२ सप्रतिपक्ष सुस्वरत्रिक, संस्थानषटक, संहननषट्क, मनुष्यद्विक, विहायोगति द्विक, उच्चगोत्र का जघन्य अनुभाग बन्ध स्वामित्व
२५५ ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, अंतरायपंचक का जघन्य अनुभागबन्ध स्वामित्व पुरुषवेद, संज्वलनचतुष्क, अप्रशस्तवर्णचतुष्क आदि ग्यारह, स्त्या द्धत्रिक आदि आठ अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क का जघन्य अनुभाग बन्ध स्वामित्व
२५७ उत्कृष्ट, जघन्य अनुभागबन्ध स्वामित्व का प्रारूप
२५८ गाथा ७५, ७६
२६२-२६६ योगस्थान, प्रकृतिभेद, स्थितिभेद, स्थिति बन्धाध्यवसायस्थान, अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान, कर्मप्रदेश और रसाणुओं का अल्पबहुत्व
. २६३ गाथा ७७
२६७-२७१ जीव द्वारा कर्मवर्गणाओं के ग्रहण करने की प्रक्रिया २६७ गाथा ७८, ७६
२७१-२७८. कमदलिक भाग-विभाग प्ररूपणा एवं अल्पाधिक भाग मिलने का कारण
२७२ गाथा ८०
२७८-२७६ जघन्य प्रदेशबन्ध होने में हेतु
२७८गाथा ८१
२७९-२८१ स्वतः परतः उभयतः उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध की संभावना का विचार
२७६
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