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________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४५ ४१७ सम्यक्त्वमोहनीय की अन्तर्मुहर्तन्यून उत्कृष्ट स्थिति का जो आगम होता है, उसको उदयावलिका सहित करने पर प्राप्त प्रमाण सम्यक्त्वमोहनीय की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता जानना चाहिये । इसका कारण यह है कि मिथ्यात्वमोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति को बांधकर मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में अन्तमुहर्त अवस्थान करके ही जीव सम्यक्त्व प्राप्त करता है और सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद मिथ्यात्वमोहनीय की उदयावलिका के ऊपर की अन्तमुहर्तन्यून सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति को सम्यक्त्वमोहनीय में उदयावलिका के ऊपर संक्रमित करता है। जिससे अन्तमुहूर्त न्यून उत्कृष्ट स्थिति का जो आगम होता है, उसमें उदयावलिका को मिलाने पर प्राप्त प्रमाण सम्यक्त्वमोहनीय की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता' कहलाती है। इस प्रकार से उदयसंक्रमोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का विचार करने के पश्चात् अब अनुदयसंक्रमोत्कृष्ट प्रकृतियों की स्थितिसत्ता को बतलाते है १ उत्कृष्ट स्थितिबंध करके मिथ्यात्वगुणस्थान में अन्तर्मुहूर्त अवश्य रहना पड़ता है । तत्पश्चात् सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है तथा करण किये बिना कोई जीव सम्यक्त्व प्राप्त करे तो अन्तमुहूर्त न्यून उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता लेकर ऊपर के गुणस्थान में जाता है । जिससे मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का बंध करके अन्तर्मुहूर्त जाने के बाद चौथे गुणस्थान में जाता है । अतएब अन्तमुहूर्तन्यून उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता चौथे गुणस्थान में होती है, उदयावलिका से ऊपर की उस स्थिति को सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रान्त करता है, जिससे अन्तमुहूर्त और उदयावलिका से शेष रही मिथ्यात्दमोहनीय की सभी स्थिति सम्यक्त्वमोहनीय रूप होती है। उसमें सम्यक्त्वमोहनीय की उदयावलिका को मिलाने पर अन्तमुहूर्त न्यून सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिसत्ता सम्यक्त्वमोहनीय की है। www.jainelibrary.org | Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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