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पंचसंग्रह : ५
हैं-ज्ञानावरणपंचक, चक्ष , अचक्ष , अवधि और केवल दर्शनावरण रूप दर्शनावरणचतुष्क, असातावेदनीय, मिथ्यात्वमोहनीय, सोलह कषाय, पंचेन्द्रियजाति, तैजससप्तक, हुंडकसंस्थान, वर्णादि बीस, अगुरुलघु, पराघात, उपघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति, उद्योत, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयश:कीति, निर्माण, नीचगोत्र, अन्तरायपंचक और तिर्यंच, मनुष्य की अपेक्षा वैक्रियसप्तक, इन छियासी बन्धोदयोत्कृष्ट प्रकृतियों की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वही उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इन प्रकृतियों का जो उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है, वही पूर्ण स्थितिबन्ध उनकी उत्कृष्ट स्थितिसत्ता है।
प्रश्न-जब उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोडाकोडी सागरोपम आदि होता है तब उसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष आदि है और अबाधाकाल में तो दलिक होते नहीं हैं। जिससे ७० कोडाकोडी सागरोपम आदि पूर्ण जो उत्कृष्ट स्थितिबन्ध, उसी को उत्कृष्ट स्थितिसत्ता कैसे कहा जा सकता है ? ___ उतर-उत्कृष्ट स्थितिबन्ध जब होता है, तब जिसका अबाधाकाल बीत गया है, वह पूर्वबद्ध दलिक सत्ता में होता है तथा उसकी पहली स्थिति उदयवती होने से स्तिवुकसंक्रम द्वारा अन्य प्रकृति में संक्रान्त नहीं होती है। इसलिए जितना उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है, उतनी ही उत्कृष्ट स्थितिसत्ता कह सकते हैं। इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है।
इस प्रकार बन्धोदयोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का विचार करने के पश्चा। अब अनुदयबन्धोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता बतलाते हैं
जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अपना उदयकाल न हो, तब . होता है, वे अनुदयबन्धोत्कृष्ट प्रकृतियां कहलाती हैं। ऐसी प्रकृतियों के नाम हैं—निद्रापंचक, नरकद्विक, तिर्यंचद्विक, औदारिकसप्तक,
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