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________________ बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४४ ४११ अब स्थितिसत्ता - स्वामित्व का विचार करते हैं । स्थितिसत्ता के दो प्रकार हैं- जघन्य स्थितिसत्ता और उत्कृष्ट स्थितिसत्ता । अतः इन दोनों के स्वामित्व का आशय यह हुआ कि जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का स्वामी कौन है ? इन दोनों में से पहले उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता के स्वामित्व का निर्देश करते हैं । उत्कृष्ट स्थितिसत्ता-स्वामित्व बंधु उक्कोसाणं उक्कोसठिई उ संतमुक्कोसं । तं पुण समये णूणं अणुदयउक्कोसबंधीणं ॥ १४४ ॥ शब्दार्थ - बंधुदउक्को साणं - बंधोदया उत्कृष्ट प्रकृतियों की, उक्कोसठिई - उत्कृष्ट स्थिति, उ-ही, संतमुक्कोसं - उत्कृष्ट स्थितिसता, तं - वही, पुण - पुनः समये णूणं - समयन्यून, अणुदयउवकोसबंधीणं - अनुदय बंधीत्कृष्ट प्रकृतियों की । शब्दार्थ - बंधोदयोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थितिसत्ता है और अनुदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों की समयन्यून उत्कृष्ट स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थितिसत्ता है । विशेषार्थ - गाथा में उत्कृष्ट स्थितिसत्ता के स्वामियों का विचार प्रारम्भ किया है । प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता दो प्रकार से प्राप्त होती है -- बंध से और संकम से और इनके भी उदय और अनुदय की अपेक्षा दो-दो भेद हो जाते हैं । अर्थात् बन्धोदयोत्कृष्ट स्थिति - सत्ता, अनुदयबंधोत्कृष्ट स्थितिसत्ता एवं उदयसंक्रमोत्कृष्ट स्थिति - सत्ता, अनुदयसंक्रमोत्कृष्ट स्थितिसत्ता । इन दोनों दो-दो प्रकारों में से पहले बन्धोदयोत्कृष्ट और उसके बाद अनुदयबन्धोत्कृष्ट स्थितिसत्ता प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता के स्वामियों को बतलाते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है उदय होने पर जिन प्रकृतियों की उकृष्ट स्थिति का बन्ध हो, वे बन्धोदयोत्कृष्ट प्रकृतियां कहलाती हैं। जिनके नाम इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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