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बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४४
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अब स्थितिसत्ता - स्वामित्व का विचार करते हैं । स्थितिसत्ता के दो प्रकार हैं- जघन्य स्थितिसत्ता और उत्कृष्ट स्थितिसत्ता । अतः इन दोनों के स्वामित्व का आशय यह हुआ कि जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का स्वामी कौन है ? इन दोनों में से पहले उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता के स्वामित्व का निर्देश करते हैं ।
उत्कृष्ट स्थितिसत्ता-स्वामित्व
बंधु उक्कोसाणं उक्कोसठिई उ संतमुक्कोसं । तं पुण समये णूणं अणुदयउक्कोसबंधीणं ॥ १४४ ॥ शब्दार्थ - बंधुदउक्को साणं - बंधोदया उत्कृष्ट प्रकृतियों की, उक्कोसठिई - उत्कृष्ट स्थिति, उ-ही, संतमुक्कोसं - उत्कृष्ट स्थितिसता, तं - वही, पुण - पुनः समये णूणं - समयन्यून, अणुदयउवकोसबंधीणं - अनुदय बंधीत्कृष्ट प्रकृतियों की ।
शब्दार्थ - बंधोदयोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थितिसत्ता है और अनुदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों की समयन्यून उत्कृष्ट स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थितिसत्ता है ।
विशेषार्थ - गाथा में उत्कृष्ट स्थितिसत्ता के स्वामियों का विचार प्रारम्भ किया है । प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता दो प्रकार से प्राप्त होती है -- बंध से और संकम से और इनके भी उदय और अनुदय की अपेक्षा दो-दो भेद हो जाते हैं । अर्थात् बन्धोदयोत्कृष्ट स्थिति - सत्ता, अनुदयबंधोत्कृष्ट स्थितिसत्ता एवं उदयसंक्रमोत्कृष्ट स्थिति - सत्ता, अनुदयसंक्रमोत्कृष्ट स्थितिसत्ता । इन दोनों दो-दो प्रकारों में से पहले बन्धोदयोत्कृष्ट और उसके बाद अनुदयबन्धोत्कृष्ट स्थितिसत्ता प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता के स्वामियों को बतलाते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
उदय होने पर जिन प्रकृतियों की उकृष्ट स्थिति का बन्ध हो, वे बन्धोदयोत्कृष्ट प्रकृतियां कहलाती हैं। जिनके नाम इस प्रकार
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