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________________ ४०३ बंधविधिरूपणा अधिकार : गाथा १३६ पर स्त्रीवेद का नाश होता है । अतः उसकी भी जब तक क्षय न हो, तब तक सत्ता जानना चाहिए। 1 स्त्रीवेद के पश्चात् संख्यात स्थितिखण्डों का अतिक्रमण होने के बाद हास्यादि षट्क का क्षय और हास्यादि षट्क का क्षय होने के अनन्तर समयन्यून दो आवलिका काल में पुरुषवेद की सत्ता का क्षय होता है । " अब स्त्रीवेद और नपुंसकवेद के उदय में क्षपकश्रेणि स्वीकार करने वाले की अपेक्षा सत्ता का निर्देश करते हैं- इत्यीउदए नपुंसं इत्थीवेयं च सत्तगं च कमा । अमोदयंमि जुगवं नपुं सइत्थी पुणो सत्त ॥ १३६ ॥ 1 शब्दार्थ - इत्थीउवए - स्त्रीवेद के उदय में नपुंसं – नपुंसकवेद को, इत्थीवेयं - स्त्रीवेद को, च- और, सत्तगं -सात प्रकृतियों को, च— तथा, कमा-क्रम से, अनुमोदयंमि नपुंसकवेद के उदय में, जुगवं - एक साथ, नपुंस–नपुंसकवेद, इत्थी — स्त्रीवेद, पुणो-- फिर, सत्त-सात प्रकृतियों - का । गाथार्थ - स्त्रीवेद के उदय में क्षपक े णि पर आरूढ़ होने वाला क्रम से नपुंसकवेद, स्त्रीवेद और सात प्रकृतियों का और नपुंसकवेद के उदय में क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ होने वाला १ यह क्रम स्त्रीवेद या पुरुषवेद से क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ होने वाले की अपेक्षा समझना चाहिए | क्योंकि नपुंसकवेद से क्षपकश्रेणि पर चढ़ने वाले के तो स्त्रीबेद और नपु ंसकवेद का एक साथ क्षय होता है । जब तक न हो, तब तक ये दोनों वेद सत्ता में होते हैं । उपशमणि की अपेक्षा तो उपशान्तमोह नामक ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त इन दोनों की सत्ता होती है । २ यह कथन पुरुषवेद के उदय में क्षपकश्रेणि का आरोहण करने वाले की अपेक्षा समझना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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