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________________ ३६५ सत्ता सादिमाता की अपेक्षा नाध्र वसत्ता कृतियां हैं । बंधविधि-रूपणा अधिकार : गाथा १३३ गाथार्थ-प्रथमकषाय की सत्ता चार प्रकार की है। शेष ध्र व प्रकृतियों की सत्ता तीन प्रकार की और अध्र व प्रकृतियों की सत्ता सादि और अध्र व है। विशेषार्थ-सत्ता की अपेक्षा प्रकृतियों के दो प्रकार हैं-ध्रुवसत्ता वाली और अध्र वसत्ता वाली। ध्र वसत्ता वाली प्रकृतियां एक सौ तीस और अध्र वसत्ता वाली अट्ठाईस प्रकृतियां हैं । उनमें से पहले ध्र वसत्ता वाली प्रकृतियों के सादि आदि भंगों को बतलाते हैं 'पढमकसाया चउहा' अर्थात् पहली अनन्तानुबंधिकषायें सत्ता की अपेक्षा सादि, अनादि, ध्रुव और अध्र व इस तरह चार प्रकार की हैं। जिसका कारण यह है -सम्यग्दृष्टि किसी जीव ने अनन्तानुबंधि की विसंयोजना की और उसके बाद सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व को प्राप्त हो मिथ्यात्व के निमित्त से पुनः अनन्तानुबंधि का बंध करे तब उसकी सत्ता सादि है। उस स्थान को जिसने प्राप्त नहीं किया, .उसकी अपेक्षा अनादि, ध्र व और अध्र व क्रमशः अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये। ___ अनन्तानुबंधि के सिवाय एक सौ छब्बीस ध्र वसत्ता वाली प्रकृतियां सत्ता की अपेक्षा अनादि, ध्रुव और अध्र व इस तरह तीन प्रकार की हैं। ध्रुवसत्ता वाली होने से ये सभी प्रकृतियां अनादिकाल से सत्ता में होने के कारण अनादि हैं। अभव्य के इन प्रकृतियों की सत्ता का कभी भी नाश न होने से ध्रुव और भव्य मोक्ष जाने पर इन सब प्रकृतियों का नाश करेगा, इसलिये अध्र व हैं । इन वसत्कर्म प्रकृतियों से शेष रही अध्र वसत्ता वाली प्रकृतियां सादि और अध्र व इस तरह दो प्रकार की हैं। इनका सादित्व और अध्र वत्व इन प्रकृतियों की सत्ता अध्र व होने से समझ लेना चाहिए। ये अध्र वसत्ता वाली प्रकृतियां अट्ठाईस हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं___ सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, मनुष्यद्विक, देवद्विक, नरकद्विक, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, तीर्थकरनाम,उच्चगोत्र और आयुचतुष्क। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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