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________________ पंचसंग्रह : ५ अब मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेशोदयस्वामित्व को बतलाते हैं कि मिथ्यात्व का जघन्य प्रदेशोदय अशुभ मरण द्वारा मरण को प्राप्त करे अथवा मरण को प्राप्त न करे तो भी पूर्व गाथा में कहे गये अनुसार उदयावलिका के चरम समय में जघन्य प्रदेशोदय होता है। इसी प्रकार सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय का भी मरण को प्राप्त करे या प्राप्त न करे, परन्तु उदयावलिका के चरम समय में रहते जघन्य प्रदेशोदय समझ लेना चाहिये । ३८४ यहाँ इतना विशेष है कि अन्तरकरण का समयाधिक आवलिका काल शेष रहे तब तीन पुरंज के दलिकों को अन्तरकरण की चरम आवलिका में गोपुच्छाकार रूप से स्थापित करता है, उसमें मिथ्यात्व का उदय हो और मरण को प्राप्त करे तो भवान्तर में और मरण न हो तो उसी भव में आवलिका के चरम समय में जघन्य प्रदेशोदय होता है । किन्तु मिश्रमोहनीय का उदय होने से मिश्रगुणस्थान में आया जीव जब तक वह गुणस्थान हो तब तक मरता नहीं है, अतः उसका जघन्य प्रदेशोदय जिस गति में उपशम सम्यक्त्व से गिर कर मिश्र में आये वहीं होता है । सम्यक्त्वमोहनय का उस गति में या देवगति में भी जघन्य प्रदेशोदय हो सकता है । इसीलिये दर्शनत्रिक के सिवाय शेष अप्रत्याख्यानावरणादि बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा इन सत्रह प्रकृतियों का देवों में जघन्य प्रदेशोदय बताया है । तथा उवसामइत्त, चंचउहा अन्तमुहूबंधिऊण बहुकालं । 7 पर्यन्त, पालिय सम्म पढमाण आवली अंतं मिच्छगए ॥ १२६ ॥ शब्दार्थ – उवसामइत्त — उपशमन करके, चउहा- चार बार अन्तबंधिऊण — बांध कर बहुकालं - दीर्घकाल मुहू - अन्तर्मुहूर्त, पालिय- पालन कर, आवली अन्तं - आवलिका के अन्त समय में मिच्छ गए - मिथ्यात्व में सम्म — सम्यक्त्व, पढमाण - प्रथम अनन्तानुबंधि के, 1 जाकर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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