SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२५ ३८३ उवसंतो कालगओ सव्वठे जाइ भगवई सिद्ध। तत्थ न एयाणुदओ असुभुदए होइ मिच्छस्स ॥१२५॥ शब्दार्थ-उवसंतो-उपशांत, कालगओ-मरण को प्राप्त हुआ, सवठे-सर्वार्थसिद्धि में, जाइ-जाता है, भगवई-भगवतीसूत्र से, सिद्ध-सिद्ध है, तस्थ-वहाँ, न-नहीं, एयाणुदओ-इनका उदय, असुभअशुभ के, उदए-उदय, होइ-होता है, मिच्छस्स-मिथ्यात्व का। गाथार्थ-मरण को प्राप्त हुआ उपशांतकषाय जीव सर्वार्थसिद्धि विमान में जाता है, ऐसा भगवतीसूत्र में कहा है। वहाँ इन प्रकृतियों का उदय नहीं होता है तथा अशुभ मरण के द्वारा मरने वाले या न मरने वाले के मिथ्यात्व का जघन्य प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ-गाथा में नपुसकवेदादि आठ प्रकृतियों के उदय का देवों में निषेध करने के कारण को स्पष्ट करते हुए मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेशोदय के स्वामी का निर्देश किया है। सर्वप्रथम देवों में नपुसकवेद आदि आठ प्रकृतियों के उदय न होने के कारण को स्पष्ट करते हैं जिसने मोह का सर्वथा उपशम किया है, वह उपशांतमोहगुणथानवी जीव अथवा उपशम क्रिया करने वाला उपशमणि में र्तिमान कोई जीव मरण को प्राप्त हो तो उसके लिये भगवतीसूत्र में ताया है कि सर्वार्थ सिद्धि महाविमान में उत्पन्न होता है और इसमें कोई विसंवाद नहीं है तथा सर्वार्थ सिद्धि महाविमान में नपुंसकवेद, त्रीवेद, अरति, शोक मोहनीय एवं अनन्तानुबन्धिकषायचतुष्क इन पाठ प्रकृतियों का उदय नहीं होता है। इसीलिये वहाँ इन आठ प्रकृतयों के जघन्य प्रदेशोदय का निषेध किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy