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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११६
गाथार्थ-उत्कृष्ट अद्धा-बधकाल और योग द्वारा भोगभूमियों सम्बन्धी आयु का बंध कर शीघ्र ही मर कर भोगभूमियों में उत्पन्न हो, वहाँ सबसे जघन्य स्थिति-अन्तमुहूर्त प्रमाण स्थिति को छोड़कर शेष की अपवर्तना करे, अपवर्तना होने के बादं प्रथम समय में दोनों-मनुष्यायु और तिर्यंचायु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ-गाथा में मनुष्यायु और तिर्यंचायु के उत्कृष्ट प्रदेशोदयस्वामित्व का स्पष्टोकरण करते हुए बताया है
अधिक से अधिक जितने काल तक आयु का बंध हो सकता है, उतने काल द्वारा और अधिक से अधिक जितने योग द्वारा आयु का बंध हो उतने योग द्वारा भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी उत्कृष्ट तीन पल्योपम की आयु को बांधकर मरण को प्राप्त हो, वहाँ मनुष्य या तिर्यंच के रूप में उत्पन्न हो और उत्पन्न हो कर शीघ्र सर्वाल्प जीवितकाम में कम अन्तमुहूर्त प्रमाण आयु को छोड़कर शेष समस्त आयु की अपवर्तनाकरण द्वारा अपवर्तना करके, अपवर्तना होने के बाद के प्रथम समय में वर्तमान मनुष्य और तियंच के अनुक्रम से मनुष्यायु और तियंचायु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। __ सारांश यह हुआ कि अपर्याप्तावस्था में भोगभूमिज के आयु की अपवर्तना हो सकती है, परन्तु पर्याप्त होने के बाद नहीं होती है। इसमें भी कम से कम अन्तर्मुहूर्त आयु रखकर शेष आयु की ही अपवर्तना होती है । इसीलिये अन्तर्मुहूर्त को छोड़कर शेष आयु की अपवर्तना करने का उल्लेख किया है। इन दो आयु का इसी रीति से उत्कृष्ट प्रदेशोदय हो सकता है। क्योंकि उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट काल द्वारा उत्कृष्ट आयु बांधी है और अपवर्तना होने पर अन्तर्मुहूर्त आयु को छोड़कर ऊपर के समस्त आयु के दलिक अन्तमुहर्त काल में स्थापित हैं। उसमें भी पहले स्थान में अधिक स्थापित हैं। जिससे अपवर्तना होने के बाद पहले समय में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होना बताया है । तथा
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