________________
३७०
पंचसंग्रह : ५
शब्दार्थ-हस्सठिई-जघन्य स्थिति, बंधित्ता-बांधकर, अद्धाजोगाइठिइअद्धा, योग और प्रथम स्थिति, निसेगाणं-निषेकों का, उक्कोसपए-उत्कृष्ट पद में, पढमोदयम्मि-प्रथम स्थितिस्थान में रहते, सुरनारगाऊणं-देव और नारक आयु का। ___ गाथार्थ-अद्धा, योग और प्रथम स्थिति में दलिकों के निषेक का जब उत्कृष्ट पद हो और जघन्य स्थिति बांधकर मरण होने पर देव या नरक हो तब प्रथम स्थितिस्थान में रहते उसे देव या नरक आयु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ-गाथा में देवायु और नरकायु के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी को बतलाया है कि जब अद्धा-आयु का बंधकाल, योग-मन, वचन और काया द्वारा प्रवर्तमान आत्मवीर्य और प्रथम स्थितिनिषेक-बंधने वाली आयु के पहले स्थान में होने वाली दलरचना, ये तीनों उत्कृष्ट पद में हों यानि उत्कृष्ट योग में रहते अधिक से अधिक जितने काल तक आयु का बंध हो सकता है, उतने काल आयु की जघन्य स्थिति का बंध करके तथा आयु के प्रथम स्थान में उत्कृष्ट दलिक का निक्षेप करके मरण को प्राप्त कर देव या नारक हो तो उस देव के देवायु की और नारक के नरकायु की प्रथम स्थिति का अनुभव करते हुए उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। इसका कारण यह है कि दीर्घ अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त उत्कृष्ट योग में बहुत से दलिकों को ग्रहण किया है और प्रथमस्थिति में अधिक स्थापित किये हैं। जिससे प्रथमस्थिति का अनुभव करते समय ही उत्कृष्ट प्रदेशोदय संभव है । तथा__ अद्धा जोगुक्कोसे बंधित्ता भोगभूमिगेसु लहुँ ।
सव्वप्पजीवियं वज्जइत्त ओवट्टिया दोण्हं ।।११६॥ . शब्दार्थ-अद्धा-बंधकाल, जोग-योग, उक्कोसे-उत्कृष्ट, बधित्ता-- बांधकर, भोगभूमिगस-भोगभूमियों में, लहु-शीघ्र, सव्वप्पजीवियंसबसे अल्प स्थिति को, वज्जइत्त -छोड़कर, ओट्टिया-अपवर्तना करके,. दोन्ह-दोनों का।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org