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________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११४, ११५ सकता है और कदाचित् गिरकर मिथ्यात्व में जाये तो वहाँ भी उत्कृष्ट प्रदेशोदय सम्भव है। किन्तु गुणश्रेणि के शिरोभाग को जिस समय प्राप्त हो उस समय उनका उदय होना चाहिए। तथा से कालेन्तरकरणं होही अमरो य अन्तमूह परओ । उक्कोसपएसुदओ हासाइसु मज्झिमडण्हं ॥११४।। शब्दार्थ-से काले-उस काल में, अन्तरकरणं-अन्तरकरण, होहीहोता है, अमरो-देव, य-और, अन्तमुहु-अन्त मुहूर्त के, परओ-पश्चात्, उक्कोसपएसुदओ-उत्कृष्ट प्रदेशोदय, हासाइसु-हास्यादि छह नोकषायों का, मज्झिमडण्हं-मध्यम आठ कषायों का। गाथार्थ-जिस समय अन्तरकरण होता है, उस काल में यदि मर कर देव हो तो अन्तमुहूर्त के पश्चात् हास्यादि छह नोकषायों और मध्यम आठ कषायों का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ-गाथा में हास्यादि षट्क नोकषायों और मध्यम कषायाष्टक के उत्कृष्ट प्रदेशोदयस्वामित्व को बतलाया है। विशेषता के साथ जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है उपशमणि प्राप्त कर कोई जीव अनिवृत्तिकरण के समय जब अन्तरकरण होगा और उस अन्तरकरण के पहले समय में मर कर देव हो तो उत्पन्न होने के पश्चात् उस देव को अन्तमुहूर्त व्यतीत होने पर गुणश्रोणिशीर्ष पर रहते हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा रूप हास्यषट्क तथा अप्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क एवं प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क रूप कषायाष्टक कुल मिलाकर चौदह प्रकृतियों का उस-उस प्रकृति के उदय काल में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है । तथा हस्सठिई बंधित्ता अद्धाजोगाइठिइनिसेगाणं । उक्कोसपए पढमोदयम्मि सुरनारगाऊणं ॥११॥ १ इसका कारण यह है कि अपूर्वकरण में अनिवृत्तिकरण के काल से अधिक काल में गुणश्रेणि होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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