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________________ पंचसंग्रह : ५ ३६६ उत्पन्न करते हुए तथास्वभाव से प्रभूत कर्म पुद्गलों का क्षय होता है, जिससे अवधिज्ञानी के उत्कृष्ट प्रदेशोदय नहीं होता है । इसी अर्थ को स्पष्ट करने के लिये कहा गया है - 'अवहिस्स अणोहिणु कोसो' - अवधिलब्धिरहित जीव के अवधिद्विक का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है । तथा 'दुजिण अंताणं' अर्थात् यहाँ दुजिण - दो जिन इस पद द्वारा सयोगि और अयोगि केवली इन दो गुणस्थानों को ग्रहण किया है। उसमें से सयोगिकेवली के जिन-जिन प्रकृतियों का उदयविच्छेद होता है, उन औदारिकसप्तक, तैजस- कार्मणसप्तक, संस्थानषट्क, प्रथम संहनन, वर्णादि बीस, पराधात, उपघात, अगुरुलघु विहायोगतिद्विक, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ और निर्माण रूप बावन प्रकृतियों का गुणितकांश सयोगिकेवली भगवान को सयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है तथा सुस्वर और दुःस्वर का स्वर के निरोधकाल में और उच्छ वासनामकर्म का उच्छ् वास के निरोधकाल में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है । अर्थात् स्वर और उच्छ् वास का रोध करते जिस समय अन्तिम उदय होता है, उस समय उनका उत्कृष्ट प्रदेशोदय सम्भव है । अयोगिकेवली के जिन प्रकृतियों का उदयविच्छेद होता है, ऐसी अन्यतर वेदनीय, मनुष्यगति, मनुष्यायु, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशः कीर्ति, तीर्थंकरनाम और उच्चगोत्र रूप बारह प्रकृतियों का गुणितकर्माश अयोगिकेवली को चरम समय में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है । तथा पढम गुण सेढिसीसे निद्दापयलाण कुणइ उवसंतो I देवत्तं झति गओ वेउव्वियसुरदुग स एव ॥ ११२ ॥ शब्दार्थ -- पढमगुण से ढिसीसे - प्रथम गुणश्र ेणि के शीर्ष पर वर्तमान, निद्वापयताण -- निद्रा और प्रचला का, कुणइ करता है, उदसंतो- उपशांत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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