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पंचसंग्रह : ५ से-अधिकतर गुणश्रेणि के शिरोभाग में वर्तमान-स्थित गुणितकर्मांश जीव के उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है और 'खवियकम्मो पुण जहन्न' प्रायः क्षपितकर्माश जीव समस्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशोदय का स्वामी है।
इस प्रकार सामान्य से उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशोदय के स्वामियों की विशेषता को बतलाने के बाद अब पृथक्-पृथक् समस्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामियों का निर्देश करते हैं
सम्मत्तवेयसंजलणयाण खीणंत दुजिण अंताणं । लहु खवणाए अंते अवहिस्स अणोहिणुक्कोसो ॥१११॥
शब्दार्थ-सम्मत्तवेय संजलणयाण-सम्यक्त्वमोहनीय, वेदत्रिक और संज्वलन कषाय का, खोणंत-क्षीणमोहगुणस्थान में अंत होने वाली, दुजिण अंताणं-जिनद्विक स्थानों में अंत होने वाली प्रकृतियों का, लहु रू.वणाए -~लघुक्षपणा द्वारा, अंते- क्षय होने पर, अवहिस्स-अवधिद्विक का, अणोहिण-अवधिज्ञानहीन के, उक्कोसो-उत्कृष्ट ।।
गाथार्थ-सम्यक्त्वमोहनीय, वेदत्रिक और संज्वलन कषाय का, क्षीणमोहगुणस्थान में अंत होने वाली प्रकृतियों का तथा जिनद्विक-सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थान में अंत होने वाली प्रकृतियों का लघुक्षपणा द्वारा क्षय होने पर गुणितकर्माश जीव के उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है, किन्तु अवधिद्विक का अवधिज्ञानहीन जीव के उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है।
विशेषार्थ --- गाथा में कतिपय प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय के स्वामी को बतलाया है--
- सम्यक्त्वमोहनीय, वेदत्रिक-स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुसकवेद और संज्वलनकषायचतुष्क इन आठ प्रकृतियों का लघुक्षपणा के द्वारा क्षय करने के लिये उद्यत गुणितकर्मांश जीव के उस-उस प्रकृति के उदय के चरम समय में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है।
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