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________________ ३६२ पंचसंग्रह : ५ गाथार्थ-जीव शीघ्र (सम्यक्त्व) गुण से गिरकर मिथ्यात्व में जाये और तत्काल मरण प्राप्त करे तो आदि की तीन गुणश्रोणियां नरकादि भवों में होती हैं, शेष संभव नहीं हैं । क्योंकि इनका क्षय होने पर ही अशुभ मरण होता है। विशेषार्थ- कौनसी गुणश्रोणि किस गति में पाई जाती है, इसका निरूपण करते हुए बताया है कि कोई जीव सम्यक्त्वादि के निमित्त से होने वाली गुणश्रोणि करने के अनन्तर तत्काल ही सम्यक्त्वादि गुणों से गिरकर मिथ्यात्व में जाये और वहाँ से भी तत्काल अप्रशस्त मरण द्वारा मरकर नारकादि भव में जाये तो अल्प काल पर्यन्त उदय की अपेक्षा आदि की सम्यक्त्व, देशविरति और सर्वविरति के निमित्त से होने वाली तीन गुणश्रेणियां सभव हैं। यानि इन तीन गुणों के निमित्त से होने वाली दल रचना नारकादि भवों में संभव है और दलरचना संभव होने से उसका उदय भी संभव है। शेष गुणश्रेणियां संभव नहीं हैं। क्योंकि नारकादि भव अप्रशस्त मरण द्वारा मरण प्राप्त करने पर होते हैं। ____उक्त तीन के सिवाय शेष गुणश्रेणियों के होने तक अप्रशस्त मरण नहीं होता है, परन्तु उन गुणश्रेणियों के दूर होने के बाद ही होता है। इसलिये आदि की तीन गुणश्रेणियां ही नारकादि भव में संभव हैं, शेष संभव नहीं हैं। उक्त कथन का सारांश यह हुआ कि यदि सम्यक्त्व के निमित्त से हुई दल रचना कितनीक बाकी हो और देशविरति प्राप्त कर तन्निनिमित्तक गुणश्रेणि करे और उसका भी अमुक भाग शेष हो तब सर्वविरति प्राप्त कर तन्निमित्तक गुणश्रेणि करे और वहाँ से तत्काल गिरकर मिथ्यात्व में जाये एवं वहाँ से भी तत्काल मरण को प्राप्त कर नारकादि भव में जाये तो इन तोनों गुणों के निमित्त से हुई दल रचना को साथ लेकर जाने वाला होने से उदयापेक्षा जीव के इन तीन गुणश्रेणियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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