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________________ 'धविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०७, १०८ शब्दार्थ - संमत - सम्यवत्व, बेससं पुन्नविरइ - देशविरति और सर्वविरति उप्पत्ति - उत्पत्ति, अणविसंजोगे - अनन्तानुबंधि की विसंयोजना में, दंसणखवणे - दर्शनमोह के क्षपण में, मोहस्स समणे - मोहनीयकर्म के उपशमन में, उवसंत - उपशांतमोहगुणस्थान, खवगे - चारित्रमोह के क्षय में, य-और, खोणाइतिगे क्षीणम ेह आदि तीन गुणस्थानों में, असंखगुणिय - असं - ख्यातगुणित, गुणसेदिवलिय-गुणश्र णिदलिक, जहक्कमसो -- यथाक्रम से, सम्मत्ताईणेक्कारसह - सम्यक्त्वादि ग्यारह का, कालो-काल, समय, उ- - और संखंसो - संख्येयांश । -- गाथार्थ - सम्यक्त्व देशविरति और सर्वविरति की उत्पत्ति करते, अनन्तानुबंधि की विसंयोजना करते, दर्शनमोहनीय का क्षपण करते, ( चारित्र) मोहनीय का उपशमन करते, उपशांतमोहगुणस्थान में, चारित्रमोहनीय का क्षय करते और क्षीणमोह आदि तीन गुणस्थानों में, इस तरह ग्यारह गुणश्रेणि होती हैं और इन सम्यक्त्व आदि ग्यारह गुणश्रेणियों में दलिकरचना क्रमशः असंख्यात - असंख्यात गुणित रूप होती है और काल अनुक्रम मे संख्येयांश संख्यातवां - संख्यातवां भाग है । विशेषार्थ - इन दो गाथाओं में ग्यारह गुणश्र ेणियों के नाम, उनमें दलिकरचना होने का क्रम और प्रत्येक के काल, समय का निरूपण किया है । ग्यारह गुणश्रेणियों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-१ सम्यक्त्व की उत्पत्ति में पहली, २ देशविरति की उत्पत्ति में दूसरी, ३ सर्वविरति की उत्पत्ति में तीसरी, ४ अनन्तानुबधिकषायों की विसंयोजना में चौथी, ५ दर्शनमोहत्रिक के क्षय में पांचवीं, ६ चारित्रमोह के उपशमन छठी, ७ उपशांत मोहगुणस्थान में सातवीं, ८ ( चारित्र) मोहनीय के .3 क्षय में आठवीं, 8 क्षीणमोहगुणस्थान में नौवीं, १० सयोगिकेवलीगुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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