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पंचसंग्रह : ५
श्रेणियों के शिरोभाग का अनुभव करते मिथ्यात्व का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है । एक समय मात्र का होने से वह सादि है । उसके सिवाय शेष समस्त प्रदेशोदय अनुत्कृष्ट है । उसको दूसरे समय होने से सादि है । अथवा वेदकसम्यक्त्व से गिरते समय भी अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय प्रारम्भ होने से सादि है । उस स्थान को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया, उनकी अपेक्षा अनादि तथा ध्रुव, अध्रुव क्रमशः अभव्य, भव्य की अपेक्षा जानना चाहिए ।
पूर्वोक्त सैंतालीस प्रकृतियों और मिथ्यात्वमोहनीय के शेष जघन्य और उत्कृष्ट ये दोनों विकल्प सादि और अध्रुव -सांत हैं । जिनका विचार पूर्व में अनुत्कृष्ट और अजघन्य विकल्पों के प्रसंग में किया जा चुका है ।
ध्रुवोदया प्रकृतियों के विकल्प तो उक्त प्रकार हैं और शेष रही अध्रुवोदया एक सौ दस प्रकृतियों के जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट ये सभी विकल्प इन प्रकृतियों के अध्रुवोदया होने से सादि और अध्रुव -सांत, इस तरह दो प्रकार के हैं ।
इस प्रकार प्रदेशोदय की अपेक्षा उदय प्रकृतियों के भंगों को जानना चाहिये | अब स्वामित्व प्ररूपणा करते हैं। वह दो प्रकार की है - उत्कृष्ट प्रदेशोदयस्वामित्व और जघन्य प्रदेशोदयस्वामित्व । उनमें से पहले उत्कृष्ट प्रदेशोदयस्वामित्व का प्रतिपादन करने के लिये संभव गुणणियों को बतलाते ! हैं ।
गुणश्र ेणियां
संमत्तदेसपुन्नविरइ उप्पत्ति अणविसंजोगे । दंसणखवणे मोहस्स समणे उवसंत खवगे य ॥ १०७ ॥ खीणाइतिगे असंखगुणिय गुणसेढिदलिय जहक्कमसो । सम्मत्ताईणेक्कारसण्ह कालो उ संखंसो ॥ १०८ ॥
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