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________________ ३४४ पंचसंग्रह : ५ गाथार्थ-पांच निद्राओं के बिना इकतालीस प्रकृतियों का अन्तिम जो एक स्थिति का उदय वह जघन्य उदय जानना चाहिये। विशेषार्थ-पूर्व में जिन प्रकृतियों का उदीरणा के काल से उदय का काल अधिक कहा है उन इकतालीस प्रकृतियों में से पांच निद्राओं के सिवाय शेष रही मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीति, तीर्थंकरनाम, उच्चगोत्र, आयुचतुष्क, साता-असातावेदनीय, ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, अन्तरायपंचक, संज्वलन लोभ, वेदत्रिक, सम्यक्त्वमोहनीय और मिथ्यात्वमोहनीय इन छत्तीस प्रकृतियों की अन्तिम समयमात्र स्थिति रहे तब जघन्य स्थिति का उदय समझना चाहिए अर्थात् अयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में जिनका उदय हो उन प्रकृतियों का तथा आयुचतुष्क, ज्ञानावरणपंचक, अन्तरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, संज्वलन लोभ और सम्यक्त्वमोहनीय इन समस्त प्रकृतियों की स्थिति का क्षय करते-करते सत्ता में अन्तिम एक स्थितिस्थान शेष रहे तब उसका वेदन करने पर उनकी जघन्यस्थिति का उदय समझना चाहिये। ___तीन वेद तथा मिथ्यात्वमोहनीय की प्रथम स्थिति का भोग करतेकरते जब अन्तिम एक समय शेष रहे तब उसका भोग करते हुए उन प्रकृतियों की जघन्य स्थिति का उदय जानना चाहिये। प्रश्न- यद्यपि निद्रापंचक का शरीरपर्याप्ति पूर्ण करने के बाद इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण न होने के अन्तरिम काल में केवल उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। इसलिये उतने काल के अन्तिम समय में उस स्थान का अनुभव करने पर जघन्य स्थिति का उदय क्यों नहीं कहा है ? उत्तर- उसे जघन्य स्थिति का उदय न कहने का कारण यह है कि यहाँ जघन्य स्थिति का उदय उसे कहा है कि कोई भी ऐसे एक स्थान का अनुभव करे कि जिसका वेदन करने पर उसके अन्दर उस समय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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