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________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०२ ३३६ स्थिति-उदय के प्रकार उदओ ठिइक्खएणं संपत्तीए सभावतो पढमो । सति तम्मि भवे बीओ पओगओ दीरणा उदओ ॥१०२॥ शब्दार्थ-उदओ-उदय, ठिइक्खएणं-स्थिति का क्षय होने से, संपत्तीए-संप्राप्त, सभावतो-स्वभाव से, पढमो-पहला, सति-होते, तम्मि-उसमें, भवे-होता है, बीओ-दूसरा, पओगओ--प्रयोग से, दोरणा-उदीरणा, उदओ-उदय । गायार्थ-स्थिति (अबाधाकाल रूप) का क्षय होने से संप्राप्तप्राप्त होने वाला उदय पहला स्वभावोदय है और उस (स्वभावोदय) के होते हुए(उदीरणा रूप) प्रयोग से जो होता है, वह दूसरा उदीरणोदय है। विशेषार्थ-गाथा में स्थिति के उदय के स्वभावोदय और उदीरणोदय इन दो रूपों का स्वरूप बतलाया है। जो इस प्रकार जानना चाहिये____ 'ठिइक्खएणं' अर्थात् स्थिति-अबाधाकाल रूप स्थिति का क्षय होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव रूप उदय के हेतुओं के प्राप्त होने पर प्रयत्न के बिना स्वाभाविक रीति से होनेवाला उदय स्वभावोदय कहलाता है । इसके संप्राप्तोदय अथवा उदयोदय ये अपर नाम हैं। इस प्रकार से स्वभावोदय का स्वरूप जानना चाहिये। ___अब उदोरणोदय के स्वरूप का निर्देश करते हैं-स्वभावोदय के प्रवर्तमान होने पर उदीरणाकरणरूप प्रयोग द्वारा उदयावलिका से ऊपर के स्थानों में विद्यमान दलिकों को आकृष्ट करके उदयावलिका १ ये कारण प्रकृतियों के रसोदय में हेतु हैं। अर्थात् अबाधाकाल से ऊपर के स्थानों में जीव के जाने पर ऊपर बताये गये कारणों के अभाव में प्रदेशो. दय होता है, किन्तु रसोदय तो ऊपर बताये गये कारणों के सद्भाव में होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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