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पंचसंग्रह : ५
सम्यक्त्व से च्युत होने वालों के मिथ्यात्व का उदय सादि है। उस स्थान को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया यानी अभी तक भी जिन्होंने सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं किया, उनकी अपेक्षा अनादि, अभव्य की अपेक्षा ध्रुव और भव्य की अपेक्षा अध्रव है । तथा
'अधुव-धुवाणं दुविह तिविहा' अर्थात् अध्र वोदया प्रकृतियों का उदय सादि और अध्र व-सांत इस तरह दो प्रकार का और ध्र वोदया प्रकृतियों का उदय अनादि ध्रव और अध्र व इस तरह तीन प्रकार का है। इन दोनों प्रकार को प्रकृतियों में से अल्पवक्तव्य होने से पहले अध्रुवोदया प्रकृतियों के भगों का विचार करते हैं। ___अध्र वोदया प्रकृतियों का उदय स्थायी नहीं किन्तु अध्र व होने से वे सभी प्रकृतियां सादि और अधू व उदयवाली जानना चाहिये । तथा
मिथ्यात्वमोहनीय के सिवाय शेष सैंतालीस ध्र वोदया प्रकृतियों का उदय अनादि, ध्र व और अध्र व इस तरह तीन प्रकार का है। जो इस प्रकार है
घ्र वोदया घाति कर्म की प्रकृतियों का क्षीणमोहगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त और नामकर्म की ध्र वोदया प्रकृतियों का सयोगि: लीगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त उदय होता है । किन्तु उन-उन गुणस्थानों से पतन न होने से उन प्रकृतियों के उदय में सादि भंग संभव नहीं है। उन स्थानों को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया है उन समस्त संसारी जीवों के पूर्वोक्त ध्र वोदया प्रकृतियों का उदय अनादि तथा ध्र व और अध्र व क्रमशः अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये।
इस प्रकार से प्रकृत्युदय की सादि अनादि प्ररूपणा करने के साथ प्रकृति-उदय का वर्णन समाप्त होता है। अब स्थित्युदय अर्थात् अधिक से अधिक और कम से कम स्थिति के उदय की प्ररूपणा करते हैं । इसके लिये पहले स्थिति-उदय के प्रकारों को बतलाते हैं।
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