SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६ ३२७ इस प्रकार से बंधप्रकृतियों का जघन्य और उत्कृष्ट से निरन्तर बंधकाल जानना चाहिये । सरलता से समझने के लिये तद्दर्शक प्रारूप इस प्रकार है क्रम प्रकृतियां उत्कृष्ट बंधकाल जघन्य बंधकाल ज्ञानावरणपंचक, दर्शना- । अभव्याश्रयी अनादि- | अन्तमूहर्त वरणनवक, अन्तराय- | अनन्त, भव्याश्रयी अनादि पंचक, भिथ्यात्व, सोलह | सांत, पतिताश्रयी देशोन कषाय, भय, जगुप्सा | अर्धपुद्गल परावर्तन एक समय २ | हास्य, रति, अरति, शोक, | अन्तर्मुहूर्त स्त्रीवेद, नपुसकवेद | पुरुषवेद साधिक एक सौ बत्तीस सागरोपम , ४ । सातावेदनीय देशोन पूर्वकोटि असातावेदनीय अन्तर्मुहूर्त चार आयु अन्तमुहूर्त देवद्विक, क्रियद्विक | तीन पल्योपम अन्तमुहूर्त एक समय ८ | मनुष्यद्विक, औदारिक | तेतीस सागरोपम अंगोपांग, वज्रऋषभनाराचसंहनन - तिर्यंचद्विक असंख्य उत्सर्पिणी अव- , । सर्पिणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy