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पंचसंग्रह : ५ अनादि आदि विकल्पों का विचार किया जा रहा हैं। मूल प्रकृतियों की अपेक्षा जो इस प्रकार है
'मोहाउयवज्जाणं' अर्थात् मोहनीय और आयु कर्म के सिवाय शेष रहे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन छह कर्मों का अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध 'साइयाइओ होइ' सादि, अनादि, ध्रुव और अध्र व इस प्रकार चारों तरह का होता है तथा उन्हीं छहों के अनुत्कृष्ट से शेष रहे उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य विकल्प सादि
और अघ्र व हैं-'साइ अधुवो सेसा' । ___अब पूर्वोक्त छह कर्मों से शेष रहे मोहनीय और आयु कर्म के प्रदेशबंध के बंधप्रकारों के विकल्पों को बतलाते हैं कि 'आउमोहाण सव्वेवि' अर्थात् आयु और मोहनीय कर्म के जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट ये सभी भेद सादि और अध्र व होते हैं !
इस प्रकार सामान्यतः मूल प्रकृतियों के उत्कृष्ट आदि भेदों के विकल्पों का निर्देश करने के बाद अब कारण सहित विस्तारपूर्वक बतलाते हैं । उसमें भी पहले मोहनीय और आयु को छोड़कर छह कर्मों के भेदों का विचार करते हैं
छब्बंधगस्स उक्कस्स जोगिणो साइ अधुव उक्कोसो। अणुक्कोस तच्चुयाओ अणाइअधुवाधुवा सुगमा ॥८४॥ होइ जहन्नोऽपज्जत्तगस्स सुहमनिगोय जीवस्स । तस्समउप्पन्नग सत्तबंधगस्सप्पविरियस्स ॥८॥ एक्कं समयं अजहन्नो तओ साइ अदुवा दोवि ।
शब्दार्थ-छब्बंधगस्स-इन छह कर्मों के बंधक के, उक्कस्स जोगिणोउत्कृष्ट योगी के, साइ-सादि, अधुव–अध्रुव, उक्कोसो - उस्कृष्ट, अणुकोस-अनुत्कृष्ट, तच्चुयाओ-वहाँ से गिरने पर, अणाइ-अनादि, अधुवाअध्र व, धुवा-ध्र व, सुगमा-सुगम हैं ।
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