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बंध विधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६
बंध प्रकार
जघन्य
अजघन्य
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
बंधत्रकार
जघन्य
अजघन्य
अशुभ ध्रुवबंधिनी ज्ञानावरणपंचक आदि तेतालीस प्रकृति
बंध विकल्प
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
सादि
"1
21
"1
सादि
71
27
31
21
अनादि
X
अनादि
अनादि
X
अध्रुवबंधिनी तिहत्तर प्रकृति
बंधविकल्प
X
X
ध्रुव
X
X
ध्र ुव
X
ध्र ुव
X
X
X
अध्रुव
33
37
33
71
अध्र ुव
31
"
33
""
२३६
४
२
२
o
२
इस प्रकार से अनुभागबंघ सम्बन्धी सादि-अनादि प्ररूपणा का आशय स्पष्ट करने के पश्चात् अब उस प्ररूपणा को विशेष रूप से स्पष्ट करने के लिये स्वामित्व प्ररूपणा करते हैं ।
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