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पंचसंग्रह : ५ और विशुद्ध परिणामों में रहते अजघन्य अनुभागबंध होता है। इस प्रकार मिथ्यादृष्टि के क्रमपूर्वक होने से जघन्य, अजघन्य प्रकार सादि और अध्र व हैं।
तेतालीस अशुभ ध्र वगंधिनी प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबंध के विकल्पों का ऊपर विचार किया जा चुका है और उत्कृष्ट अनुभागबंध पर्याप्त सर्व संक्लिष्ट संज्ञी मिथ्यादृष्टि के एक अथवा दो समय पर्यन्त होता है, उसके बाद मंद परिणाम होने पर अनुत्कृष्ट बंध होता है। इसलिए ये दोनों भी सादि, अध्र व हैं।
अध्रुवबंधिनी (७३) प्रकृतियों के जघन्यादि चारों विकल्प उनके अध्र वबंधिनी होने से ही सादि और अध्र व जानना चाहिए।
उक्त सादि-अनादि प्ररूपणा का सरलता से बोध कराने वाला प्रारूप इस प्रकार है
शुभ ध्र वबंधिनी तेजस आदि आठ प्रकृति
बंधविकल्प
बंधप्रकार
सादि । अनादि । ध्रव ।
__ अध्र व
-
जघन्य
अजघन्य
XXX
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
अनादि । ध्रुव
१ दिगम्बर कर्मसाहित्य में भी इसी प्रकार से बंधयोग्य १२० उतर प्रकृतिकों
की सादि-अनादि प्ररूपणा का निर्देश दिया है। देखिये पंचसंग्रह शतय
अधिकार गाथा ४४४-४४८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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